पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/३०१

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१४६ ! हिंदुई साहित्य का इतिहास वे और आगे बढ़े, और एक गाँव में पहुँचे जहाँ शेषनाग पर सोए हुए विष्णु की एक मूर्ति थी। देवता के सामने पूजा के रूप में लोगों बस लगा रहे थे । उन्हीं के निकट बाँस के डंडों का एक देर था जो लोगों ने वहाँ लगा रखा था। पीगा ने उनमें से एक डंडा माँगा । जिसके वे ये उसने उन्ह देना न चाहा ! तव सध डंडे रे बाँस के । रूप में परिणत हो गए । देखने वाले लोग पीपा के समीप आए और उनके चरणों पर गिर गए । वहाँ थापित मूर्ति के दर्शन कर पीपा और उनकी स्त्री चीधर ( Chidhar ) नामक एक विष्णु-भक्त के घर गएजिसने उन्हें देख कर उनका आदरपूर्वक स्वागत किया, और उन्हें अपने घर ले गया किन्तु उनकी भेंट कर सकने योग्य उसके पास कुछ न रह गया था तब वैष्णव ने अपनी स्त्री से कहा : ‘यह अत्यन्त सौमाग्य की बात है कि ऐसे साधु इमारे घर आए हैं; किन्तु हम उन्हें भोजन किस प्रकार कराएँ ?’ उसकी स्त्री ने कहा : ‘मैं अपने को घर में छिपा रखेंगी, तुम यह नया लहूँगा , जो मैंने आज पहली बार पहना है , लेकर बनिए के यह जानो, और साक्ष्यों के लिये सीधा ले आओो ।’ वैष्णव ने वैसा ही किया । जबूखाना तैयार हो गया और उसने चीजें लाकर चार पत्तलों पर लगादीं, तो उसने उन्हें भोजन के लिए बुलाया, किन्तु अपने लिए साधुओं के बाद खाने की प्रतिशा घोषित की । पापा ने उससे कहा :' और मैं, मैंने उस वागत वाले घर में न खाने की प्रतिज्ञा कर ली है, जहाँ घर के लोग . vang apooryphes ( इंजोल की कथाएँ , ० १ ०३ । History of the Nativity of Mary and the Childhood ot he Saviour, अध्याय १८, से क्वात होता है कि दिन जाते समय गन्स ग्रीस के प्रति सकि प्रकट करने आएगोतकार ( Psalrist ) के कथन के समान, और यीवू ने उन्हें किसी व्यक्ति का अहित न करने का उपदेश दिया । बही७० २०३। १ भारतीयों का आवश्यक वनजिसके बिना वैष्णव की स्त्री बाहर ही नहीं आ सकती ।