पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/२९९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१४२ 1 हिंदुई साहित्य का इतिहास उन्होंने उनका बड़े उत्साह के साथ स्वागत किया हैं और फल तथा

केनपदवान उनकी भेंट किए।

जब रामानन्द द्वारिका चलने लगे तो पीपा ने उनका अनुगमन किया । स्वामी ने उनसे ऐसा करने से मना किया, किन्तु पीपा ने ध्यान न दिया। उनके साथ बारह स्त्रियाँ भी थीं, जो उनके साथ जाना। चाहती थीं । रामानन्द ने उन्हें भय दिखाया, और ग्यारह ने को वास्तव में अपना विचार बदल दिया । किन्तु वारहवों ने, जिसका नाम सीता था, और जो बहुत कम उम्र की थी, स्वामी के आदेशों का पालन किया । पीपा के पुरोहित ने रामानन्द को जिन्होंने राजा को, जिसका वह भण्डारी था , बैरागी बना लिया था, घृणित सध' का अपराधी सिद्ध करने के लिए विष खा लिया। किन्तु पीपा ने वह जल जिससे उन्होंने रामानन्द के चरण धोए ये पिला कर उसे फिर जीवित कर दिया । पीपा ने यह सुन रखा था कि द्वारिका में जिस महल में कृष्ण प्रकट होते हैं वह समुद्र में है; उसके सम्बन्ध में निश्चित करने के लिये वे सीतासहित समुद्र में कूद पड़े । ऐसा करते देखकृष्ण ने उन्हें दर्शन दिए, और उन्हें हृदय से लगा लिया । पीषा ने वहाँ सात दिन व्यतीत किए, तत्पश्चात् भगवान ने उनसे कहा : ‘हरि के भक्तों को जलम रखना मेरे लिये अनुचित है, इसलिए तुम इसी क्षण चले जाओ'। तत्र पीपा उदास हुए; किन्तु अपने देवता की आशा भो न टाल सकते थे, वे वापिस चले जाए । चलते समयकृष्ण ने एक मुहर देते हुए उनसे कहा : तुम जिसके यह मुहर लगा दोगेवह अपने पापों की यातना से रक्षित होंगे ।’ तत्पश्चात् पीपा समुद्र से बाहर निकलेऔर यह दृश्य देखकर समुद्रतट पर जो लोग थे वे इकट्ठे हो १ शब्दश:, बाक्ष्य के इस वर्ष का'