पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/२९०

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नान ट्रेड [ १३५ सेवकों ने उससे कहा : ‘श्राप नहीं जानते आपने किससे झगड़ा मोल लिया है ? यह व्यक्ति जिसने आप को पराजित किया है वह अवश्य नाम देव हैं ।' अन्त में व्यापारी जो कुछ देना चाहता था सब तराजू में रख दिया, किन्तु पलड़ा न उठा ! तो उसने पराजय स्वीकार की है सफलता पूर्व उसका -खण्डन कर लेने पर नाम देव ने उ ने अपना घन ले जाने दिया और स्वयं वहाँ से विदा हो गए । एक दिन कृष्ण ने एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण किया, और कृष्ण-१क्ष की एकादशी के दिन ' नाम देव की परीक्षा लेने गए । उन्होंने सन्त से खाना माँगए, तो उन्होंने ( सन्त ने ) कहा : 'श्रा ' तो एकादशी है, श्राप यहाँ विश्रम कीजिए, कल प्रातः आप बहुत-सा लीजिए ।"उनमें टो-चार याम प्रश्नोत्तर हुए 4 गाँव के लोगों ने दोनों में सुलह कराने की चेष्टा की, किन्तु उन्होंने उनकी बात पर ध्यान न दिया 1 जत्र दोनों झ ते-झगड़ते थक गएतब ब्राह्मण ने चारपाई। हँगाई और सन्त के दरवाजे के आागे लेट रहे । प्रातः नाम देब उन्हें देखने गए तो उनका मुंह खुला हुआ, और उन्हें मरा हुआ पाया। बहुते-से लोग लाःश के चारों तरफ कट्टे हो गए, और नम देव को भला-कहने और हत्या का दोषी ठहराने लगे । नाम देव ने किसी से कुछ न कहा, किन्तु ब्राह्मण को अपने कन्धों पर उठा कर नदी के किनारे ले गए, अहाँ उन्होंने एक चिता बना कर उस पर लाश रख दी और स्वयं भी उस पर चढ़कर बैठ गए ! वहाँ से उन्होंने जिला कर कहा : दुनिया ने सती देवी है, किन्तु सता ’ किसी ने न देखा होगा; ठीक है, उसे लोग अब देख लें !' इतना कह उन्होंने अपनी १ विष्णु को खास तौर से समर्पित दिनऔर जब कि नवयुवक अत्यन्त प्रसन्न होते हैं । २ को जो अपने पति को लाश के साथ जल जाती है । 3 पुरुष जो अपनी श्र की लाश के साथ जल जाता है, बात जो कभी नहीं सुनी गई।