पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/२८६

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नाम दर्ज { १३१ बाम देव ’ ( नाम देव के मातामह ) पण्डपुर में छीपी थे । अपने पुत्री के अत्यन्त युवावस्था में विधवा जाने पर ग्राम देव ने विवार किया : जब तक भ्रम है तब तक अन्य कोई भाव मेरी पुत्री पर आधिकार नहीं जम सकता । इस समय से जिसके साथ उसका चित्त लग जायगा उस के साथ लगा २हेगा : यह एक निश्चित बात है । तव बाम देव ने उससे कहा : ‘मेरी , विष्णुदेव की सेवा में चित्त दो; यदि तेरा ऐसा मनोरथ हो तो मैं सब रस्म पूर्ण कर अँगा । उसने इस ओर अपनी इच्छा प्रकट की । तब उन्होंने उसके काम छेद और उसके हाथ में गुड़ रखा । बड़े उत्साह के साथ उसने देवता की सेवा में मन लगाया । कुछ समय पश्चात् उसे कामवासना का यूनुभव हुआ, उसने अपने इष्टदेव के प्रति -समर्पण किया और गर्भवती हुई । पड़ोसियों के आनाफूसी करने पर उनकी बात ग्राम देव के कानों तक पहुंची । सोचविचार करने के बाद उन्होंने इस सम्बन्ध में अपनी पुत्री से पूछा । उसने उत्तर दिया : 'जिसके लिए छापने मु दी झा दी थी उसने मेरी इच्छा पूर्ण की : आप मुझसे क्या पूछते हैं ?’ तब वाम देव सन्तुष्ट हुएश्रौर फिर किसी ने उसे न चिढ़ाया । कुछ समय पश्चात् एक बच्चे का जन्म हुआा । इस अवसर पर स्कूख़ खर्च किया गया और उसका नाम नाम देव देखा गया। वह दिनदिन बड़ा ह्या अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने जाने पर, वे सत्र पूजा और भक्ति का अनुकरण करते । नाम देव ने अपने नाना से अनेक चार सेवा-विधि पूछी । एक बार जब बयाम देव पड़ोस के गाँव जाने लगे तो उन्होंने नाम देव से कहा : मुझे गाँव में तीन दिन का काम है, तुम सेवा करो। रात को मूर्ति ’ को दूध पिला दियां करना ।? १ बाम देव का उन मुनियों की सूची में नाम आता है जो ऋषि वृगों द्वारा शाराप हैोने के समय राजा परीक्षित के पास आते थे। २ यह मूर्ति वह है जा ऊपर बिट्ठल' या ‘पण्डरनाथ’ के नाम से कही गई है। यह कृष्ण, भागवत यां विष्णु के अतरक्त और केाई दूसरी चीज़ नही है।