अंत में इसी लेखक की 'परमार्थ जपजी'[१] शीर्षक रचना है,जिसकी एक हस्तलिखित प्रति कलकत्ते की एशियाटिक सोसायटी के पुस्तकालय में है;और'घनावत'[२] (Ghanawat),कविता जिसकी छोटे फोलिओ में, १०६७(१६५६-१६५७) में प्रतिलिपि की गई,एक अत्यन्त सुन्दर हस्तलिखित प्रति डॉ० ए० स्प्रेगर (Sprenger) के पास है।
जायसी शेरशाह के राजत्व-काल में जीवित थे, क्योंकि ६४७ (१५४०-२५४१) में उन्होंने अपने 'पद्मावती'काव्य की रचना की। यह रचना,जो हिन्दी में लिखी गई है,या तो फारसी अक्षरों में,[३] था देवनागरी अक्षरों में, लिखी गई है, और जिसमें ६५०० के लगभग छंद हैं।[४]
ज़ाहर[५] सिंह
'फाग'(श्री कृष्ण)--श्री कृष्ण का फाग-के रचयिता हैं,कविता कृष्ण की क्रीड़ाओं पर है जो होली से संबंधित चरित्र है जब कि हमेशा लाल या पीले रंगे हुए अवरक की बुकनी फेंकी जाती है,और जिसे 'फाग'कहते हैं । यह कविता,जिसके मुख
- ↑ जिसका 'असीम सत्ता पर वातत्रात का आत्मा' अर्थ प्रतीत होता है।
- ↑ यह शब्द एक भारतीय व्यक्तिवाचक नाम प्रतीत होता है,क्योंकि यह 'घर(सप्राण 'ग') से लिखा गया है।
- ↑ रिशल्यू ( Richelieu) की सड़क वाले पुस्तकालय की हस्तलिखित प्रति और हंकन फोर्स ( Duncan Forbes ) के पास सुरक्षित हस्तलिखित ग्रन्थों में से नं० १६८ की प्रति फारसी अक्षरों में हैं। १८५६ के 'जूर्ना एसियातीक' (Journal Asiatique) में पद्मावत पर श्री टी० पैवी (T. Pavie)का कार्य देखिए।
- ↑ उसी पत्रिका में श्री टी० पैवी ने उसका अनुवाद दिया है। इस काव्य का एक लखनऊ का संस्करण है,१८४४,अठपेजो।
- ↑ 'जाहर' संभवतः अरबो शब्द 'जौहर'-मोती या हीरा के हिन्दुओं द्वारा किए गए विकृत हिज्जे हैं।