वेदान्त का सिद्धान्त और रहस्यमय जीवन उपयुक्त बताया है । रचना गुरु और शिष्य के बीच एक वार्तालाप के रूप में लिखी गई है। इस रचना की एक प्रति मैकेन्जी[१]संग्रह मे है।
हिन्दुई के एक लेखक जिनके संबंध में मैं कोई विवरण संग्रह नहीं कर सका।
कायस्थ जाति के हिन्दू , रोहतक के निवासी, १८९८संवत् ( १८४२ ई० ) में रचित 'भक्तमाल’ के एक रूपान्तर के रचयिता और जिसका उल्लेख २१ मार्च१८६७ के मेरठ के 'अखबार-इ आलम' में हुआ है।
रचयिता हैं :
१.कृष्ण की प्रशंसा में उनके चार गुणवाचक नामों द्वारा निर्मित आठ पंक्तियों के एक कवित्त के, जो अपर से नीचे पढ़ने पर एक अनुष्टुभ,[४]दोहा, सोरठा और मल्लिका के रूप में भी पढ़ा जा सकता है। इस छंद में,जो कलकत्ते से प्रकाशित हुआ है, शब्द अपने अर्थो द्वारा एक दूसरे से भिन्न हैं।
२.‘वलराम कथामृत'–बलराम की कथा का अमृत –शीर्षक बलराम संबंधी एक काव्य के जिसे बाबू गोपाल चन्द्र ने दुहराया