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खुसरो


कहा जाता है खुसरो ने फारसी में निन्यानवे पुस्तकों की रचना। की जितनी, गद्य में उतनी ही पद्य में, जिनमें लगभग पाँच हज़ार छंद हैं । अन्य रचनाओं के अतिरिक्त मुसलमानों की लोकप्रिय गाथाओं पर एक ख़मस' अर्थात् रोमन ‘सेंक’ ( Cinq ); दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन, के उपलक्ष्य में एक कविता किरान इ सदैन, और ‘दिल्ली का इतिहास’ उनकी देन हैं । उन्हें संगीत का भी अत्यन्त विस्तृत ज्ञान था । केवल अपने जीवन के अंत में उन्होंने कुछ हिन्दुस्तानी पद्यों की रचना की, किन्तु मीर तक़ी ने उनकी जीवनी में हमें बतलाया है कि इतने पर भी उनकी संख्या बहुत है । इन अंतिम रचनाओं में ऐसी रचनाएँ हैं जो इस रीति से लिखी गई हैं कि चाहे कोई उन्हें फारसी में लिखा समझे अथवा हिन्दुस्तानी में दिखा समझे उनका हमेशा एक ही अर्थ निकलता हैं। मननूलाल' ने खुसरो द्वारा हिन्दुस्तानी में लिखित एक लम्बा मु खम्मस उद्धृत किया है जिसके प्रत्येक छंद का पाँचवाँ चरणाद्ध फ़ारसी में है। इस प्रसिद्ध व्यक्ति की एक ग़जल का अनुवाद यहाँ दिया जाता है जो भारतवर्ष में एक लोकप्रिय गाना बन गई है । इसके मूल की जो विशेषता है वह यह है कि प्रत्येक पंक्ति का प्रथम चरणाद्ध फ़ारसी में और दूसरा हिन्दुस्तानी में है । यह गाना, जैसा कि कोई सोच सकता है, एकाकी जनानों में गुनगुनाया जाता है :

'अपनी दुखियारी सजनी की दशा से बेसुध मत हो; मुझे अपने नैनों के दर्शन दे, मुझे अपने बैन सुना । मेरे प्रियतम ! तेरे विरह में रहने की मुझ में शक्ति नहीं.. मुझे अपने हृदय से लगा ले । बत्ती की तरह जो स्वयं जलती है..इस चाँद के प्रति प्रेम के वशीभूत हो मैं निरंतर रोती हूूँ। मेरी आँखों में नींद नहीं है, मेरे शरीर में चैन नहीं

१ गुलदस्ता-इ निशांत; ४३७ तथा बाद के पृष्ठ

निशात’, ४३७ तथा बाद के पृ्ठ

२ अथवा, एक पाठान्तर के अनुसार, ‘कॉपते हुए श्र' के समान ।