पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१४७

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१२० ? , हिंदुई साहित्य का इतिहास यद्यपि पारसी सामान्य गुजराती में और कभी फ़ारसी में लिखते हैं, उनमें ऐसे भी हैं जिन्होंने हिन्दुस्तानी का प्रयोग किया है, और इस प्रकार, मेरे ग्रन्थ में उल्लिखित रचयिताों में, म्नई के, बोमनगी दोसबजी मलेंगे । उन्हीं जीवनड़ लेखकों ने भारतीय कवियों में कुछ यूरोपियन ईसाइयों, कम-सेकम उन से उत्पन्न, का उल्लेख किया है । उदrरण के ।लए यूरो- पियन (. गी ) सोंन' ( Sormbre ) औौर, सरधना (Sirdhana ) की रानीप्रसिद्ध बेगम समरू, उपनाम ‘जीनत उन्निसा' स्त्रियों का आभू घण, के पुत्र, जो सा६ि नाम से ज्ञात हैं , क्योंकि यह उनका तखल्लुस है, जठ कि उनकी प्रधान श्रादरसूचक उपाधि ज़फ़रयाप'—विजयी है । वे दिलसोऊ के शिशु थे, और उन्हेंोंने कुछ उर्दू कवितों की रचना की जो सफल हुई थीं । उन्होंने, दिल्ली मेंआपने घर पर साहित्यिक गोष्ठियाँ की थीं जिनमें इस राजधानी के प्रान कवियों, तथा, अन्य के अतिरिक, सरवर, जिनके कारण हमें यह बात विस्तार से मालूम हुई है, ने सहायता प्रदान की । कहा जाता है, वे, पूर्वी लोगों में अत्यन्त समाहुत कलातू शनीकी में, चित्रकला में और संगीत में निपुण थे । वे १८२७ में, पूर्ण यौवनावस्था में मृयु को प्राप्त हुए । उनके बपतिस्मा के नाम से बलथर ( Balthazar ), और तख ल्लुस से असीर दास नामक एक मित्र थे, जिन्होंने भी सफलतापूर्वक हिन्दुस्तानी कविता को रचना को। सरबर का कथन है कि वे गी और ईसाई ( नसरानी ) थे, और उनकी कविताओं में, जिनके उन्होंने उदाहरण भी दिए हैं, मौलिकता का अभाव नहीं है । सरधना ( Sirdhana ) के छोटेसे दरबार में, उसी समय में, एक तीसरे हिन्दुस्तानी के यूरोपियन कवि, और उस पर भी फ्रांसीसी, थे, जिन्हें लोग फ़रम्' या ‘कांग्रे, अर्थात् फ्रांस का निवासी, कहते थे । लोग १ समरू?—अनु०