पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१४४

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भभिकी [ ११७ में बाधा नहीं डालते हैं मुग़लों से मूलतः फ़ारस के, और पठानों से अफगान समझा जाता है । सैयदों को 'अमीर' के स्थान पर, ‘मोर' उपाधि दी जाती है : शेख़ों की कोई विशेष उपाधि नहीं है । मुग़ल अपने नाम से पहले मिज़,' या बाद में ‘बेग' उपाधि लगाते हैं मैं उन्हें आशा’ य। ‘ख़्वाज़' भी कहते हैं ; और पठान ‘वाँ’ कहे जाते हैं । मुसलमान फकीरों को 'शाह', 'सफ़ी’ या पीरकी उपाधि मिलती हैं । उनके चिकित्सकों को मौला’ या ‘’ कहते हैं । स्त्रियों को ‘खानम’, ‘बेगम, ‘नातून, ‘साहिब।’ या मुल्ला ‘सांहिब, ‘बी’ या ‘बीबी । 'बी’ और देवहिन्दुओं को आदरसूचक उपाधियाँ हैं ; पहजी का ठीकठीक अर्थ है 'संत, और दूसरी का ‘देवता' । 'श्री' नामों से पहले और ‘देव’ बाद में रखी जाती है । इन उपाधियों का प्रयोग नगरों, पर्वतों, नदियों, आदि के नाम के साथ भी होता है ।' प्राचीन समय में गौल लोग ( Gauls ) नगरोंवनों, पत्तों के साथ दिखुस( divus ) या दिव ( diva ) उपाधियाँ लगाते थे । यह एक भारतीय प्रथा थी, जो, केल्ट भाषा और बेल्ट जाति के पुरोहितों के धर्म ( druidigue ) की उत्ति के साथ-साथ, गद्दा के किनारे से न्यूज़ ( Meuse ), मार्ग ( Marne ) और सैन ( Seine ) के किनारों पर यहाँ आया । हमारे 'समय में, रूसी लोग अत्र तक अपने देश को ‘Sainte Russie' ( संत रूस ) कहते हैं । १ फ़ारसी में. मिर्जा' उपाधि, जिसका अर्थ है 'अमौर का पुत्र' नाम के बाद लगाने से शहजादा होने की सूचना देता है; किन्तु नाम के पहलेयह एक सामान्य उपाधि है जो अन्य के अतिरिक्त शिक्षितों को दी जातो है। २ इस रूप में, मुसलमान ‘इज़रतशब्द का प्रयोग करते हैं। वे इस प्रकार कइवे है : ‘जरत दिल्ली, हजरत आगरा: ।