पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१४०

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[ ११६ ( Racine ) , ब्वाल ( Boilea ), तथा चौदहवें लुई के समय के अत्यधिक प्रसिद्ध कवियों में से अधिकांश अपनी शिक्षा अच्छी नहीं" समझते थे यदि वे अपनी कविता में लेटिन के कुछ अंश न रख पाते थे। रोम में लेटन कवितों के साथसाथ ग्रीक कविताएँ रची जाती थीं, जिसके कारण जो दोनों क्ल सिकल भाषाओं में लिखते थे वे ‘uriusque lin gure scriptores’ कहे जाते थे । जिस भारतीय प्रया का मैने उल्लेख किया है उसमें एक बात और पैदा हो गई हैः वह यह है कि वे लेखक जो रचना की इस प्रवीणता के लिए उत्साहित हुए हैं, हिन्दुस्तानी या फ़ारसी में लिखने के अनुसार, दो विभिन्न काव्योपनाम या तख़लुर धारण करते हैं । क्षेत्र में इन लेखकों के वर्ग निर्धारित कर लेने चाहिए । सर्वप्रथम स्थापित होने वाली विभिन्नता, जो ऑस्यन्त स्वाभाविक प्रतीत होती है, उन्हें हिन्दुओं और मुसल मानों में अलग-अलग करना है, तो भी ऐसा करते समय यह देखने को मिलेगा कि किसी भी मुसलमान ने हिन्दुई या हिन्दी बोली में नहीं लिखाजघ कि बहुत-से हिन्दुओं ने चाहे उर्दू, चाहे दक्विनी में लिखा है; साथ ही उन्होंने बहुत पहले से फ़ारसी में लिखा था, जैसा कि सैयद अहमद ने भी उस उद्धरण में कहा है जो मैंने उनके आसार उस्सानादीद' से दिया है ।' किन्तु जब कि मेरे द्वारा उल्लिखित तीन हजार भारतीय लेखकों में से दो हजार दो सौ से अधिक मुसलमान लेखक हैं, तो हिन्दू लेखक श्राठ सौ हैं, और इन पिछलों में से भी केवल दो सौ पचास के लगभग हैं जिन्होंने हिन्दी में लिखा है मैं वास्तव , इस वर्ग के सभी लेखकों को जान लेना कठिन है, क्योंकि हिन्दी कवियों के तस्करों का अभाव है, और इस प्रकार एक बहुत बड़ी संख्या हमें अशात , जब कि उर्दू लेखकों के बारे में यह बात नहीं है, जिनकी मूल जीवनियों में क म-नाम देने का यान तो रखा गया है। विशेषतः पंजाब, कश्मीर, राजपूताना और उत्तर-पश्चिम प्रान्तों ( गरेज़ी सरकार की १ यह उद्धरण ‘लै ओत्यूर ऐंदूस्तान' ( हिन्दुस्तानी प्रन्थर ) में देखिए, ४ तथ बाद के पृष्ठ ।