पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१२१

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६४ ! हिंदुई साहित्य का इतिहास मइत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वे मूल के कठिन और संदिग्ध अंशों की व्याख्या करने के साधन सिद्ध हो सकते हैं ; प्रसिद्ध हिन्दू लेखक कुलपति ने इन शब्दों में, जिन्हें मैंने अपने ‘रुदीमाँ द ल लाँग ऐंडई' से लिए हैं, अपने विचार प्रकट किए हैं : ‘यदि संस्कृत काव्य हिन्दी में रूपान्त रित कर दिया जाता तो वास्तविक अर्थ और भी अच्छी तरह से समझ में आ सकता था । ।' कभी कभी ये अनुवाद ही हैं जो दुर्भाग्यवश बोई हुई मूल रचनाओं के स्थान पर काम पाते हैं ।' जहाँ तक झारसी से अनूदित की जाने वाली कथानों से सम्बन्ध है, वे वास्तविक अनुवाद होने के स्थान पर अनुकरण मात्र हैं और परिचित कथाएँ ही नए ढंग से प्रस्तुत की गई हैं : अथवा एक सुन्दर यूनुकरण हैं, जो कभी कभी मूल को अपेक्षा अच्छी रहती हैं, उनकी रोचकता में कोई कमी नहीं होती ।' इसके अतिरिक मेरे विचार से हिन्दुस्तानी रचनाएँ फ़ारसी की रचनाओों, प्रायः जिनकी विशेषता अत्यधिक ध्रतिशयोक्ति रहती है, से अधिक स्वाभाविक होती है। यूरोप में लगभग अज्ञात इसी साहित्य का विवरण में प्रस्तुत करना चाहता हूं। मेरी इच्छा उसे समृद्ध बनाने वाले श्रौर विद्वानों को ध्यान आकृष्ट करने वाले सभी प्रकार के पद्य श्रौर गद्यग्रन्थों की घोर संकेत करने की है। इसके लिए मैंने अनेक हिन्दुस्तानीग्रन्थों का अध्ययन किया। है , और उससे भी अधिक सरसरी निगइ से देखे हैं । जहां तक हो सका है ने अधिक से अधक हस्तलिखित ग्रन्थ प्राप्त करने की की है; सार्द चट जनिक और निजी पुस्तकालयों के हिन्दुस्तानी भडारों से परिचित होने के लिए मैं दो बार हंगड गया हूँ, और मुझे यह बात ख़ास तौर से कहनी है। १ उदाहरण के लिएजैसा, मेरा विचार है, ‘बैंताल पच.सी’ तथा अन्य अनेक रचनाओों का हाल दें। २ विला ने ‘तारोडइ- शेर शाही’ के संबंध में जो कहा है वही अन्य सभी अनुवादों के संबंध में कहा जा सकता है। : ‘अपने तौर पर इसकी फ़ारसी चाहे जितनी पूर्ण हो , मैं मो अंत में इसे पूर्ण बना सका हूँ।'