पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/९६

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हिन्दी साहित्यकी भूमिका जैसा कि ऊपर बताया गया है, अबतारका मुख्य हेतु भक्तों के लिए लीलाका विस्तार करना ही है । यह लीला दो प्रकारकी होती है, प्रकृट और अप्रकट । मध्ययुगके भक्तोंने अधिकृतर प्रकट. लीलाको ही गान किया है, अर्थात् जो लीला प्रपञ्चगोचर होती है, उसीका विस्तार किया है। वृन्दावनमें भगवान् गोपियों के साथ नित्य लीलानें रत हैं।' मथुरा और द्वारकाके भेदसे श्रीकृष्णके - दो धाम हैं। उनमें भी मथुराधाम गोकुल और मधुपुरी इन दो स्थानोंके मेदसे दो हैं । गोलोक नामसे प्रसिद्ध श्रीकृष्णकुम धाम गोकुलकी ही विभूति है, क्योंकि श्रीकृष्णकी माधुरी गोकुलमें ही सर्वाधिक होती है। मथुरधामकी महिमा वैकुण्ठसे भी अधिक है। रामायणकी अयोध्या भी ऐसी ही है। | यह भगवान्की माधुरी चार प्रकारकी है । ऐश्वर्य-माधुरी, क्रीड़ा-माधुरी, वेणु-माधुरीं और विग्रह-माधुरी । ऐश्वर्य-माधुरीमें भगवान्के ईश्वर-रसकी प्रधानता होती है । क्रीड़ा-माधुरी बहुत प्रकारकी है फिर भी उन सबमें गोपलीला श्रेष्ठ है। भागवतमें बताया गया है कि भगवान्ने जब वेणुको अपने अधरॉपर रखा और उसे निनादित किया तो सर्वज्ञ होकर भी ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देवतागण, तत्त्व निर्णय न कर सके,—सभी मुग्ध हो रहे । इससे प्रकट है कि भगवान्की वेणु-लीला अचिन्त्य है। सूरदासने और अन्य भक्तोंने १५ जगनायक-जगदीसपियारी जगतजननिजगरानी। निंद बिहार गोपाललाल सँग वृन्दाबन रजधानी ॥ | -सूरदास २ अहो मधुपुरी धन्या वैकुण्ठाच गरीयसी । दिनमेकं निवासेन हुरी भक्तिः प्रजायते ॥ --लघुभागवतामृत ३ यद्यपि सब वैकुण्ठ बखाना । वेद-पुरान-विदित जग-जाना ।।। अवध-संरिस प्रिय मोहिं न सोऊ। यह प्रसंग जाने कोउ कोऊ ।। अति प्रिय मोहि इहांके वाली । मम घामदा पुरी सुखरासी ।। ४ विविधोपचरणेषु विदग्धे वेणुवाद्य उरुथा निजशक्षा । तव सुतः सति यदाधरबिम्बे दत्तवेरनयत् स्वरजातीः । सवनशस्तदुपधार्थसुरेशः शक्रशर्बपरमेष्ठिपुरोगाः । कृवय आनतकन्धरचित्तः कुश्मलं ययुरनिश्चिततत्त्वाः मा० १०, ३५, १४-१५