पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/९२

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हिन्दी साहित्यकी भूमिका भरे पड़े हैं। केवल अन्तर इतना ही है कि भागवतमें जो स्थान श्रीकृष्णको दिया गया है, वही स्थान रामायणमें रामचंद्रको दिया गया है, और भागवतमें। जहाँ माधुर्य-भावको प्रधान स्थान दिया गया है वहाँ रामायणमें प्रीति-भावको । माधुर्य-भाव और प्रीति-भावके अन्तरको हम आगे स्पष्ट करेंगे । इस भागवत महापुराण के अनुसार भगवान् वैकुण्ठ आदि धाम में तीन रूपसे निवास करते हैं -स्वयंरूप, तदेकात्मरूप और आवेशरूप । श्रीकृष्णचंद्र भगवान्कै स्वयंरूप हैं, रामचरितमानसक राम भी ऐसे ही हैं । तदेकारभरूपमें सन अवतारोंकी गणना होती है जो तुत्वतः भगवद्रूप होकर भी रूप और आकारमें भिन्न होते हैं। इसके उदाहरण मत्स्य, वराह आदि लीलावतार हैं। ज्ञान-शक्त्यादि विभागद्वारा भगवान् जिन महत्तम जीवोंमें आविष्ट होकर रहते। हैं उन्हें आवेशरूप कहते हैं। जैसे वैकुण्ठमें नारद, शेष, सनक, सनंदन आदि । गीतामें कहा है कि जब जब धर्मकी ग्लानि होती है, अधर्मका अभ्युत्थान होता है तब तब मैं अपने आपको मनुष्य रूपमें सृष्ट करता हैं। गीताकी इस चातको तुलसीदासने औरणिक-रूपमें समझा था। उनकी दृष्टिमैं जब जब धर्मकी.. । हानि होती है और अधम अभिमानी राक्षसोंकी वृद्धि होती है, तब तब भगवान् मनुज रूप धारण करते हैं और संसार की पीड़ा दूर करते हैं । परन्तु अवतारका एकमात्र कारण यही नहीं हैं। प्रधान कारण भी यह नहीं है। मुख्य कारण है। * भगवतके श्रीकृष्ण और रामायणके रामकी तुलना कीजिए ईश्वरः परमः कृष्णः सच्चिदानन्दविग्रहः । अनादिरदिगोविन्दः सर्वकारणकारणम् ॥ भागवत ऑर--- सोइ सच्चिदानंदधन रामा । अज विग्यान-रूप बलधामा । व्यापक स्याप्य अखंड अनंता । अखिल अमोघ साल भगवंता ।। अगुन अदभ्र गिर गातीतः । सबदरसी अनवद्य अजीतः ।। निर्मल निराकार निर्मोहा। नित्य निरंजन सुखसंदोहा ।। रामायण