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गुरु-मतवाद रूपोंको आभास मिलता है वह काफी प्राचीन हैं * । वैष्णव पुराणांमैं बिष्णु-पुरा सबसे अधिक प्राचीनताके चिह्नोंसे युक्त है। विष्णुके किसी भी बड़े मन्दिर या मठकी चर्चा इस पुरण नहीं हैं। श्री रामानुजाचार्यने अपने मतकी पुष्टि लिए इसीके वचन उद्धृत किये हैं। किसी किसीने अनुमान किया है कि बिष्णुपुराणमें उल्लिखित कैलकुल या कैङ्किल यवनोंने आन्ध्र देशमें (५९०-९००ई०) चार सौ वर्षतर्क राज्य किया था । अतः इस पुराणका काल सन् ईसवीके नौ सौ वर्षसे अधिक पुराना नहीं हैं। पर यह बात केवल कल्पना ही कल्पना है, किसी ऐतिहासिक प्रमाणसे अबतक सिद्ध नहीं की जा सकी हैं। यह पुरा; सभी वैष्णवोंके लिए प्रमाण और आदरका पात्र है परन्तु भक्ति-तत्त्व विशद वर्णन इसमें नहीं है । इस विषयमें भागवत पुराण बेजोड़ हैं। क्या ऋवित्व-शक्ति, क्या शास्त्रीय-तत्त्व, क्यों ज्ञान-चर्चा--भागवत पुराएर किसी में अपनी प्रतिद्वंदी नहीं जानता। कहा गया है कि विद्वानोकी परीक्षा भागवतमें होती हैं, * विद्यावती भागवते परीक्षा ----यह बात बिल्कुल ठीक है। इस महापुर रामायण और महाभारतकी भाँति समस्त भारतीय चिन्ताको बहुत दूरतक प्रभावित किया है ! मध्य-युगमें तो इसका प्रभाव उक्त दो ग्रंथोंसे कहीं अधिक रहा है। अकेली अँगलामें इसके ४० अनुवाद हो चुके हैं। हिन्दीमें भी उसके अनुवाद और आश्रित ग्रंथोंकी संख्या बहुत अधिक है। हिन्दीका गौरवभूत महान् गीति-काब्य सूरसागर इसी ग्रंथसे प्रभावित है और तुलसीदासजीको मायणके सिद्धान्त अधिकांश भागवतसे ही श्रेण किये गये हैं। किसीने यह बात उड़ा दी है कि भागवत महापुराणके रचयिता बोदेव थे। यह अत्यन्त भ्रान्तिमूलक बात है। बोपदेवरे भागवतके वचनोंको एक संग्रह-ग्रंथ तैयार किया था। लेकिन यह बात धीरे धीरे विश्वास की जाने लगे। हैं कि इस महापुराणकी रचना कहीं दक्षिण देशमैं ही,---शविद केरल या कर्नाटकमें हुई होगी, क्यों कि वृन्दावनके प्रसंग में शरत्कालमें जिन पुष्पोंके फूलनेका वर्णन इस ग्रंथमें आया है, उनमें से कई वृन्दावनमें उस समझ नहीं फूलते और केरल-कर्नाटकमें फूलते हैं । इस विषयमें भी कोई सन्देह नहीं कि भागवत अन्यान्य पुराणोंकी अपेक्षा एक हाथकी रचना अधिक है। जैसा कि ऊपर कहा गया है, रामचरित-मुनिस या तुल्सीरामायणमें भागवतके सिद्धान्त

  • देखिए परिशिष्ट---पुराण ।