पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/८५

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योगमार्ग और सन्त-मट मूलाधारसे उठता है और सहस्त्रारमें जाकर लय हो जाता है। इतना जान लेने के बाद हट्योगकी प्रक्रिया समझना आसान हो जाया । यह जो इतने पारिभाषिक शब्दोंकी नीरस अवतारण की गई, वह परवर्ती साहित्यको समझने में अतिशय सहायक समझ कर ही। तो, हठयोग असलमें लक्ष्य नहीं है, इसे राजगका सोपान ही बताया गया हैं, यद्यपि पक्का हठयोगी इसके सिवा अन्य किसी योगकी बात सुनना ही नहीं चाहती । वस्तुतः राजयोग ही योगीका काम्य है। उसे ही प्राप्त करनेपर काल-बंधनसे छुटकारा मिलता हैं। इस हठयोगका उद्देश्य केवल शरीरकी शुद्धि और मना सन्मार्जन हैं । देह-शुद्धिके लिए हठयोगकी क्रियाओंका विशाल ठाठ है,---धौति हैं, बस्ति हैं, नैति है, त्राटक है, नौलि है, कपालभाति है। इन्हें धर्म कहते हैं जो देहशुद्धिके कारण हैं। आसन और मुद्राओके अभ्याससे देइक दृढ़ता साधित होती है । फिर प्रत्याहार, प्राणायाम, ध्यान और समाधिसे यथाक्रम शारीरिक वीरता, लघुता, आत्म-प्रत्यक्ष और निर्लेपता आयत होती हैं । और असल जैसा कि इई आचार्योंने बताया है, आसन, प्राणायाम, मुद्रा और चादानुसंधान ये चार हो हठयोगके प्रधान प्रतिपाद्य विषय हैं । यह सब सिद्ध हो जानेके बाद सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं,-अर्थात् योगी इवामें उड़ सकता है, अपनी आत्माको निकाळ. कर विचरण कर सकता है और न जाने और कितनी कितनी विचित्र बातें कर सकता है ! ये सिद्धियाँ योगीको पथ-भ्रष्ट भी कर सकती हैं, इसलिए उनसे सावधान रहनेकी ज़रूरत है। इतना गोरखधंधा, और सच पूछिए तो यह गोरखनाथका योग ही गोरखधंधा' शब्दकी उत्पत्तिका कारण है,---पोथी पद्धःकर नहीं हो सकता; मनन, चिन्तन और निदिध्यासनसे भी नहीं हो सकता । इसे तो करके दिखाना पड़ता है। इसीलिए इस जटिल कर्म-पद्धतिके लिए, सरुकी बड़ी जबर्दस्त आवश्यकता होती है । नाथपन्यो योगियों, सहज और बज्रयानियों, तान्त्रिकों और परवर्ती सन्तोंमें इसी लिए सद्गुरकी महिमा इतनी अधिक गाई गई है। सद्रुके बिना जगत्के चाहे और सभी व्यापार हो जायें पर यह जटिल साधना-पद्धति नहीं हो सकती ।। | जिन दिनों की चर्चा हो रही है उन दिनों इस मार्गमें एक और अध्याय जोझा गया था; और आगे चलकर यह प्रक्षिप्त अध्याय मूलसे भी अधिक प्रभाव शाली सिद्ध हुआ। सद्रुक कृपासे सब सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं. इसे माने