पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/८४

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६४ हिन्दी साहित्यकी भूमिका सवारण मनुष्यमें कुण्डलिनी अधोमुख रहती है और इसीलिए ऐसा मनुष्य कामक्रोधादिका क्रीत दास बना रहता हैं। | कुण्डलिनी अब उदबद्ध होकर ऊपरको उठती है तो उससे स्फोट होता है जिसे 'नाद' कहते हैं। नादसे प्रकाश होता है और प्रकाशका व्यक्त रूप है। * महाबिंदु'। यह बिन्दु तीन प्रकारका होता है; इच्छा, ज्ञान और क्रिया। पारिभाषिक तौरपर योगी लोग इन्हींको कभी सूर्य, चंद्र और अग्नि कहते हैं और कभी ब्रह्मा, विष्णु और शिव भी कहते हैं । परवर्ती सन्त लोग भी कभी कभी अपने रूपकों में इन पारिभाषिक शब्दको प्रयोग करते हैं। अब, यह जो नाद और बिन्दु हैं वह असलमें अखिल ब्रह्माण्ड-व्याप्त अनाहत नाद या अनहुद नादको व्यछिमें व्यक्त रूप हैं अर्थालु जो ना अनाहूत भावते. सारे विश्वमें व्याप्त है उसीका प्रकाश जब व्यक्ति में होता है तो उसे नाद और बिन्दु कहते हैं ! बुद्ध जोव श्वास-प्रश्वासके अधीन होकर निरन्तर इड़ा और पिंगला मार्ग में चल रहा है। सुषुम्नाका पन्थ प्रायः बन्द है इसीलिए बद्ध जीवकी इद्रियाँ और चित्त बहिर्मुख हैं। जो अखण्ड नाद जगत्के अन्तस्तलमें और निखिल ब्रह्माण्डमें निरन्तर ध्वनित हो रहा है, उसे वह नहीं सुन पाता। परन्तु जब क्रिया-विशेषसे सुषुम्ना पन्थ उन्मुक्त हो जाता है और कुण्डलिनी शक्ति जाग उठती है तो प्राण स्थिर होकर उस शून्य पथसे निरन्तर उसे अनाहत ध्वनि या अनाहत नादको सुनने लगता है। ऐसा करनेसे मन विशुद्ध और स्थिर होता है और उसकी स्थिरताके साथ ही साथ यह ध्वनि अधिक नहीं सुनाई देती क्योंकि चिदात्मक आत्मिा उस समय अपने स्वरूपमें स्थिर हो जाता है। और फिर बाह्य प्रकृतिसे उसका कोई सरोकार नहीं होता। यह नाद मूलतः एक होकर भी औपाधिक संबंधके कारण अर्थात् भिन्न उपाधियोंसे युक्त होनेके कारण सात स्तरों में विभक्त है। शास्त्रमें जिसे प्रणव या ओंकार कहते हैं वही उपाधिरहित शब्द-तत्र है। किसी किसी साधकने तथा वैयकिरणोंने इसीको स्फोट कहा है। यह स्फोट अखण्ड सुचारूप ब्रह्म-तत्वका वाचक है। स्फोटको ही शब्द-ब्रह्म और सत्ताको ब्रह्म कहा गया है । यह ध्यानमें रखनेकी बात है कि स्फोट वाचक शब्द है और सत्ती बाच्त्र । इस प्रकार छन्थ्य (ब्रह्म-सत्ता) को प्रकाशित करनेवाला वाचक शब्द भी ( स्फोट या नाद ) ब्रह्म ही है । इसका मतलब यह है कि ब्रह्म ही ब्रह्मका प्रकाशक है। इस सम्बन्धको लेकर भी सन्ताने कितने ही कैद रूपकोंकी रचना की है। यह शब्द,