पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/८३

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योगमा और सल-अत। परिव्याप्त है। व्यष्टि (व्यक्ति में व्यक्त होनेपर इसी शक्तिो कुण्डलिनी काहने हैं। कुण्डलिनी-शक्ति और प्राण-शक्ति के साथ ही लेकर जब मनु प्रवेश करता है। सभी जव साधारणतः तीन अवस्थामें रहते हैं। जद, दुति और स्वप्न । अर्थात् या तो वे जाते रहे हैं, या सोते रहते हैं या सक्दः देते रहते हैं । इन तीनों ही अवस्था में कुण्डलिनी शक्ति निश्चेष्टे रहर्स हैं । उह समय इसके द्वारा शरीर-धारणका कार्य होता है। इस कुण्डलिनको ठीक ठीक समझनके लिए शरीरकी बनावटकी कल्पना करनी चाहिर ! पंढमें स्थित भेदण्ड सीधे जहाँ जाकर पशु और उपथके मध्यभागमें लगता है इह स्वर्भू लिंदा है जो एक त्रिकोण चक्र अवस्थित है । इसे अग्नि-चक्र कहते हैं। इसी त्रिकोण या झ-बुझमें स्थित स्वयंभू लिंगको साढ़े तीन दल्यों या वृत्तोंमें लपेट कर सकी भाँति कुण्डलिनी अवस्थित है। इसके ऊपर चार दलका एक कमल हैं जिसे मूलाधार चक्र कहते हैं। फिर उसके ऊपर नाभिऊ पास स्वाधिष्ठान चक्र है जै छः दलों के कमलके आकारका है । इस ऋके ऊपर मणिपूर चक्र है और उसके भी ऊपर इदके पास अनाहत चक्र । ये दोनों क्रमशः दस २ बार के पद्मके अकारके हैं। इसके ऊपर कण्ठके पास विशुद्धाव्य चक्र है जो सोलह दलके कमलके आकारका हैं। और भी ऊपर जाकर झूमध्य- अज्ञो नामक चक्र है जिसके सिर्फ दो ही दल हैं। ये ही वे छः चक्र है जिन्हें ‘घट्स' कहुकर वारंवार उत्तरकालीन सन्तोंने स्मरण किया है। इन चक्रोंको भेद करने बाद, मस्तकमें शून्य चक्र हैं जहाँ जीवात्मा पहुँच देन’ योगको चरम लक्ष्य है। इस स्थानुपर जिस कंमली कुल्पना ॐ गई है उसमें हजार दुल हैं, इसी लिए इसे सहस्रार चक्र भी कहते हैं ! अन् मेरुदण्डमें, प्राण-वायुको बढ्न करनेवाली कई नाड़ियाँ हैं जिनमे से कुछका अभास हम साँस लेते समय पाते हैं। जो नाड़ी बाई ओर है उसे इड़ा और जो दाहिनी ओर है उसे गला कहते हैं। कबीरदास इन्हीं दोनोंको कभी कभी इंगला-पिंडाला कहकर स्मरहा करते हैं। ये दोनों ही बारी बारीसे चलती रहती हैं। इन दोनों के बीच सुषुम्ना नाड़ी हैं। इसीसे होकर कुण्डलिनी शक्ति ऊपरकी ओर प्रवाहित होती है। असल में, सुषुम्नाके भीतर भी कई और सूक्ष्म नाड़ियँ हैं। सुषुम्नाके भीतर वज्रा, उसके भीतर चित्रिणी और उसके भी भीतर ब्रह नाड़ी है जो कुण्डलिनी शक्तिका असल मार्ग है। साधक नाना प्रकारक साधनाओद्वारा कुण्डलिनी शक्तिकी ऊपरकी ओर था ऊर्ध्वमुख उद्बुद्ध करता है ।