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हिन्दी साहित्यकी भूमिके ‘काफी प्रसिद्ध है। बंगालके दिनाजपुर आदि जिलों में गोरक्षमतके अनुवर्त के जानेवाले योगियों * धमाली ' नामसे प्रचलित बहुतेरे अत्यन्त अश्लील गानोंका कैसे सम्बन्ध हुआ, यह वात अनुसंधान-योग्य है । इस प्रसंगमें केवल एक बात याद दिला देना चाहता हूँ जिसपर अगर अनुसंधान किया जाये तो कुछ नई बात जानी जा सकती है । युक्तप्रान्त और बिहार में होली के अवसरपर जो अश्लील और अश्राव्य गान गाये जाते हैं उन्हें जोगीड़ा' कहते हैं । जोगीड़ा गा लेने के बाद लोग 'कबीर' गाते हैं जो और भी भयंकर होते हैं। क्या इन जोगी और कबीरोंके साथ योगियों और कबीर-पंथियोंकी किसी प्राचीन प्रतिद्वंद्विताकी स्मृति जुड़ी हुई है या ये अश्लील गान भी उलटबाँसियोंकी ‘भाँति किसी युगमैं किसी अप्रस्तुत अन्तर्निहत सत्यकी ओर इशारा करनेवाले माने जाते थे। अस्तु । यह तो अवान्तर प्रसंग हु । प्रस्तुत यह है कि इमारे आलोच्य ‘कालके साहित्यमें सबसे प्रभावशाली भत, जिसपर वैष्णव मतको विजय पाना था, यही योगमार्ग है । यह ऐतिहासिक सत्य है कि युक्त प्रान्तके और मध्य-प्रदेशके उन भागों में जहाँकी भाषा हिन्दी है, वैष्णव मतवादके प्रचार के पूर्व सर्वाधिक प्रचलित मतवाद शैवधर्म था । पर साधारण जनता चमत्कारोंपर अधिक विश्वास करती है और इन योगियोंके चमत्कारोंकी बड़ी ख्याति थी । सुरदासने अपने भ्रमर-गीतके प्रसंगमें इस योग-मार्गकी बिकटताका प्रदर्शन करके वैष्णव धर्मकी श्रेष्ठता प्रतिपादित की है, पर कबीरदास आदिने इनकी संपूर्ण पद्धति स्वीकार करके फिर रूपकद्वारा अपनी बातको इसी पद्धतिके बलपर प्रतिष्ठित करनेका मार्ग अवलम्बन किया है। जायसीके तथा अन्य प्रेम-गाथा-कार कवियोंके ग्रंथोंसे पता चलता है कि योगियों का मार्ग ही उस समय अधिक प्रचलित था । जो राजा अपने प्रेम-व्यापारमै निष्फल हो जाता था वह योगी हो जाता था। लोककथाओंमें इन योगिर्योका बहुत उल्लेख है । उस युगके मुसलमान यात्री इन , योगियोंकी करामतका वर्णन बहुत ही हृदयग्राही भाषामें करते हैं। भक्तिचादके पूर्व निस्सन्देह यह सबसे प्रबल मतवाद था । इसीलिए भक्तिवादमें इनके शब्द और मुहावरे ही नहीं इनकी पद्धति भी बहुत कुछ आ गई है। आगे इस पद्धतिका संक्षिप्त विवरण संग्रह करनेकी कोशिश की जा रही है। इनके सिद्धान्तानुसार महाकुण्डलिनी नामक एक शक्ति है जो सम्पूर्ण सृष्टिम