पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/८१

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यौदाम और सुन्-मह महत्वपूर्ण ही नहीं काफी मनोरंजक भी सिद्ध हुआ है। दुर्भाग्यवश इस तरफ़ पंडितोंका जितना ध्यान आकृष्ट होना चाहिए था, उतना हुआ हीं हैं। सुप्रसिद्ध विद्वान् ऋ० म० १० गोपीनाथ कविराजका कना है कि * इश्योशियों अर्थात् मत्स्येंद्रनाथ, गोरखनाथ आदि नाथ-पंथियों, वज्रयानियों और सहजयानी बौद्ध, त्रिपुरा संप्रदायके तांत्रिकों, वोराचारियों, दत्तात्रेयके संप्रदाय वालों, शैव, परेवती सहजियों और नव-वैष्णवोंकः नियमित और वैज्ञानिक अध्यवन ऐसी बहुत-सी बातों का इस्योद्धाटन करेगा जो इन सबमें सम्मान रूपसे विद्यमान हैं । महायान बौद्धधर्मं और वेत्रवादका संबंध बहुत ही महत्वपू है और इस संबंध में सावधानतापूर्ण और गंभीर अध्ययनकी जरूरत है। नाथ-पंथके आदि प्रवर्तक आदिनाथ या स्वयं शिव माने जाते हैं। मत्स्येंद्रनाथ इन्हींके शिष्य थे | मत्स्येंद्रनाथके कई शिष्य बहुत बड़े पंडित और सिद्ध हुए जिनके शुभाबुसे यह मार्ग सारे भारतवर्ष प्रतिष्ठित हो गया। इन शिष्यों सबसे प्रधान गोरक्षनाथे या गोरखनाथ थे। सुप्रसिद्ध तिब्बती ऐतिहासिक तारानाथकी गवाहीपर म० म० १० इरप्रसाद शात्रीका कहना है कि गोरखनाथ पहले बौद्ध थे और बाद ना हो ये थे । इसी लिए तिब्बतके लामा लोग गोरखनाथको बड़ी बृणाकी दृष्टि देखते हैं । गोरखनाथने ही योगमार्गके इस अभिनव रूपको प्रतिष्ठित कुरा प्रसिद्ध महाराष्ट्र भक्त ज्ञाननाथने अपनेको गोरखनाथको श्रुिभ्य-परंपरामें मदद। है । उनके कथनानुसार यह परम्परा इस प्रकार है-अदिदथ, मत्स्येंद्रनाथ, गोरक्षनाथ, गहिनी ( गैनी नाथ, निवृत्तिनाथ, ज्ञाननाथ । ज्ञाननाथ तेरहवीं शताब्दीमें वर्तमान थे । इस प्रकार गोरखनाथ ग्यार-बारहीं शताब्दी हुए होंगे । गोरखनाथके कई शिघ्यू इतथे जाते हैं, जिनमें बालनाथे, हालकप्राच, मालीपाव आदि मुख्य थे । बंगालके राजा गोपीचंदकी माता रानामती भी इनकी शिष्या र्थी । हलीक-पाव या हाइपो हाड़ी नामक अन्युज छातिमें उत्पन्न हुए थे । पहले ये बौद्ध थे, बादमें नाथपंथी हो गये थे। इन्हींका एक और नाम जालंधरनाथ है। गोपीचन्द इन्हीं जालंधरना दिष्य थे । राजा भरथरी या भर्तृहरि भी इन्हें के शिष्य थे। • इन योगियोंकी अद्भुत और अश्चर्यजनक करामाती सैक कहानियाँ देशके इस सिरसे उस सिरेतक फैली हुई हैं। जान पड़ता हैं कि आगे चलकर इन योगियों और निर्गुणमतवादी सन्त लोकपर प्रभुत्व प्राप्त करनेकी होड़ भी मची हुई थीं। कबीरदास और गोरखनाथके करामाती इंव-पेंचकी कहानी