पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/८०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

योगमार्ग और सन्तमत भारतीय साहित्य परमपद प्राप्त करनेके तीन मार्ग अत्यन्त प्राचीन काल चले आ रहे हैं । ये तीन मार्ग हैं--योगमार्ग, ज्ञानमार्ग और भक्तिमार्ग । हमारे आलोच्य साहित्यमें ये तीनों मार्ग अपने स्वाभाविक ढंगपर विशेष रूपले विकसित हुए थे । इस जगह हम योग और ज्ञानमार्गके उस रूपकी थोड़ी चर्चा कर लें, जो उक्त साहित्यका प्रधान उपजीग्य है तो अच्छा हो । भारी मार्गको हम फिलहाल भागेके लिए छोड़ दे सकते हैं। पहले योगमार्गको ही लिया जाय । प्राचीन साहित्यमें 'योग' शब्द नाना अर्थेमें प्रयुक्त पाया जाता है, पर इसका आध्यात्मिक अर्थ एकदम सामञ्जस्यहीन नहीं है । नान्। प्रकारकी क्रियाओं, साधनाओं और चिन्ताओंके घात-प्रतिघातसे यह मार्ग सन् ईसवीकी द्वितीय सहस्राब्दीके आरंभमें जिस रूपमें आया था उसकी सामान्य परिचय पा लेनेपर हम अपने आलोच्य साहित्यके अन्तरंगमें प्रवेश कर सकनेमें अधिक समर्थ होंगे । इस युग में इस मार्गने हट्योग और तंत्राचार के रूपमें अपनेको अधिक प्रकाशित किया । इसलिए उनके सामान्य संतकी जानकारी मत कर लेना आवश्यक है। | मु० म० पं० इरप्रसाद शास्त्रीने जब बौद्ध सहजयानके सिद्धाचार्यों के प्रति विद्वानोंका ध्यान आकृष्ट किया तो जाना गया कि बहुतले सिद्धगण और नार्थपंथके आचार्यगण एक ही नामधारी हैं। इनमें कुछ नाम तो काल्पनिक जान पड़े पर कुछ नामोंके ऐतिहासिक होनेमें कोई सन्देह नहीं किया गया । आगे चल कुर जब इस विषयकी और भी चर्चा हुई तो जान पड़ा कि केवल ये नाम सिद्धों और नाथ-पंथियोंमें ही समान नहीं हैं बल्कि नाथ-पंथियों, निरंजन-पंथियों, तांत्रिकों आदिमें भी समान रूपसे प्रचलित हैं। इस सूचीमें निर्गुण मतके सन्तका नाम भी लिया जा सकती है । इस प्रकार इस विषयको अध्ययन केवल