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विषय-सूची

१ हिन्दी साहित्य : भारतीय चिन्ताका स्वाभाविक विकास


हिन्दी साहित्यकी उपेक्षा-इलामका प्रवेश—दो हजार वर्ष पहलेका भारतीय साहित्य—हिन्दी भाषाका क्षेत्र—भिन्न प्रकृतियोंका संघर्ष—बौद्ध धर्मका हिन्दी क्षेत्र में अस्तित्व—बौद्ध प्रभावका अर्थ— शंकर-कुमारिलद्वारा बौद्ध धर्मके निष्कासनका अर्थ—महायान मतकी अन्तिम परिणति जाडू-टोटकोंमें—बंगाल और नेपालमें बौद्ध धर्मके अन्तिम दिन—उड़ीसाका महिमा-सम्प्रदाय—भीम भोईकी कहानी —नाथपंथका आविर्भाव—काशी और मगधमें बौद्ध धर्मके अन्तिम दिन—हीनयान और महायान—वज्रयान और सहजयान—महायान मतकी विशेषता—उसका हिन्दू धर्म में घुलना ईसाईयोंका भक्ति- आवनापर अनुमान द्वारा आरोपित महायानप्रभाव—बौद्ध धर्मका लोकप्रवण होना-प्रस्थानत्रयीके आधारपर शास्त्रीय चर्चा—टीका- काल—निबंध-ग्रंथ—उनके बननेका कारण राजपूताने और पंजाबकी अवस्था--निष्कर्ष ।...... पृष्ठ १-१५


२ हिन्दी साहित्य : भारतीय चिन्ताका स्वाभाविक विकास


अपभ्रंश कविताके प्रोत्साहनका प्रश्न—चार प्राकृत भाषायें—वस्तुतः दो ही—शौरसेनी और मागधी बोलनेवालोंकी प्रकृतियाँ भिन्न भिन्न हैं— अपभ्रंशका साहित्य—काव्य-मीमांसाकी गवाही—राजा भोज और मुंजकी अपभ्रंश कविता—क्या अपभ्रंश लोकभाषा थी ?— आभीरोंकी भाषा—आभीरोंका राज्य-विस्तार और उनके साथ अपभ्रंश कविताकी प्रतिष्ठा—अपभ्रंशंभाषाविषयक विचारोंका निष्कर्ष—आधुनिक भाषाओंमें तत्सम शब्द कैसे आये—प्राचीन हिन्दी कविताके छह अंग—दो भिन्न जातिकी कविताओं का विकास—इसमें विजातीय विकास बिल्कुल ही नहीं । पृष्ठ १६-२९