पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/७९

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अकौंकी परफए ६:द चौपाइयों ( अर्कालियों ) के बाद दोहा लिखनेकी प्रथ पाई जाती हैं। अपभ्रंश ६, ठयोंमें दस दस बारह चौपाइयों अर्धालियों के बाद घता, उलाला आदि लिखकर प्रबंध लिखनेका नियम बहुत पुराना है। अपभ्रंश कायोंमें ठीक उन्हें चौपाई नहीं कहते थे परन्तु हैं वे वही चीज़ जिसे तुलसीदासजीने और जायसी आदिने चौपाई कहा है। ये दो श्रेणियोंके पाये जाते हैं, पज्झटिका और अलिछह । इनमें अलिलह तो चौराई ही है, अन्तर इतना ही है कि चौपाईके अन्तमें दो शुरु हो सकते हैं पर इसके अन्तमें लधु होने चाहिए। यह अन्तर भी ब्यवहारमै शिथिल हो जाता है । दस-बारह पञ्झटिका या अलिल्लई, जिसके बाद घत्ता वा ब्व या उल्लाला होते हैं। इन छेदात्मक छन्दों अर्थात् बत्ता, उल्लाला आदिके वीचको अलिलह आदि चौपाई जातीय छन्दोंकी पंक्तियोंको अपभ्रंश साहित्यमें कईवक कहते हैं। इस प्रकार यह पद्धति अर्थात् कडवकके बाद छेदात्मक उछाला था कब्ज छंद देकर धारावाहिक रूपसे प्रबन्ध काम्य लिखना सूफी कवियों इजाद नहीं है । | १ * भविसयत कहा ' नामक अपभ्रश काव्यसे एक उल्लाला-छेदक कडक उद्धत किया। नाथा । यह एकदम परबत कथानकोंके दोह-छैक चौपाइयोंके समान ही है तासु पूरइट कम्मु अणि } जाइवि इणदहियइ पइट्ठ ।। सा कमलसिरि तं जिं अवलोय। चरियई तं जि ताई वजौव्व ॥ तं जि ताहि चारित्तु सुस्मि । तं बच्छल्लु वयणु पिय कोमल ।। णवर पुब्बकम्मो परिणानिं । कमलदि उ सुहाइ तहो णार्मिं ।। जे चरु पिय पेसलई वंतङ ! मुँह मुहे तंबोलु खिवंत ॥ अणुदिण पिय वावार पसंसठ । तहु बटूण आलावण संसः ॥ जो परिहासई केलि करंतउ पणयसमिद् भाणु सिहरंतउ ॥ सौ बइ परचित सणेहउ । तर के होइ या होइ । जहछ । धत्ता--ते दिक्खिबि• भिल्लय मदरसु, चलिङ पिम्मु परिथत्तगुणि ।। रणरण बहंति महच्छिमइ, बहु बियप्प न्विंतवई मणि ॥