पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/७८

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हिन्दी साहित्यकी भूमिका साम्य है। ये सभी बा-शरा या शास्त्र-सम्मत श्रेणीके थे। सबमें ईश्वर-वंदना. मुहम्मद साहबकी स्तुति आदि बातें समान रूपसे पाई जाती हैं। सबकी भाषा अवधी है, सबमें फारसी प्रेम-गाथाओंकी भाँति पुरुषकी आसक्ति पहल दिखाई जाती है और सबसे बड़ी बात यह कि सबमें प्रस्तुत कथाके साथ ही साथ प्रस्तुत परोक्ष सत्ताकी ओर इशारा किया गया है । लेकिन इससे कथाकी रोचकतामें कहीं कमी नहीं आई है। निर्गुण भावके शास्त्र-निरपेक्ष साधकोंकी भाँति इन कवियों में भी अधिकतर शास्त्र-ज्ञान-बिरहित थे पर निस्सन्देह पहुँचे हुए प्रेमी थे । इन्होंने प्रेमके जिस ऐकान्तिक रूपकी चित्रण किया है वह भारतीय साहित्यमें नई चीज है। प्रेमकी इस पीरके सामने ये लोकाचारकी कुछ परवा नहीं करते । भारतीय काव्यसाघनामें प्रेमुकी ऐसी उत्कट तन्मयता दुर्लभ थी । विरहका वर्णन करने में ये कवि कमाल करते हैं। ये कथा कथाके लिए नहीं कहते, इनका लक्ष्य सदा भगवत्प्राप्ति रहती है । इसी लिए, भगवान्के विरम जीवात्माकी तड़पनका ये बड़ी सजीवताके साथ वर्णन करते हैं। इन कवियों में सर्वश्रेष्ठ पद्मावतकार मलिक मुहम्मद जायसी हैं जिनके काव्य-सौन्दर्यको चमत्कारिक रूपसे उद्धाटन करनेकी श्रय हिन्दी प्रसिद्ध अलोचक पं० रामचन्द्र शुक्लको हैं। पद्मावतकी प्रस्तावनामें अपने जैसी काव्य-मर्मज्ञता दिखाई है वैसी हिन्दी तो क्या अन्य आधुनिक भारतीय भाषाओंमें भी कम ही मिलेगी। यह प्रस्तावना अपने आपमें एक अत्यधिक महत्वपूर्ण साहित्यक कृति है। कुछ लोगोंको भ्रम है कि पद्मावत आदिमें दोहे और चौपाइयोंमें प्रबंध-काव्य लिखनेकी जो प्रथा है वह सूफी कवियों को अपना आविष्कार है। यह बात नितान्त भ्रमजन्य है। सहजयानके सिद्धों मॅसे सरहपाद और कृष्णाचार्यके ग्रंथमें दो दो चार १ सरहपादकी रचनासे चौपाई और दोहों; एक उदाहरण नीचे दिया गया अइसे बिसम सन्धि के पइसई । जो जई अत्य णड जाब न दीसइ ॥ पण्डि» सअल सत्य बक्खाइ । देहि बुद्ध वसंत ण जाणुइ ॥ अमरगमण ण तेन बिखण्डि। तो बि णिलजइ भण्इ हड पपिड़ों ।। जीवंत जे नउ जरइ, सो अजरामर होइ । गुरु उवरसे बिमल भइ,सो एर घण्णा कोइ ।।