पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/७५

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काँक्री पररूप ५५ सबूत नहीं मिला है। बगदाद नानक स्थानमें कहा जाता है कि, उनकी अरबीमें रचित बाणियोंका एक संग्रह है। नानकके बाद नौ उत्तरोत्तर शिष्य हुए जिनमें अनेक कवि थे । अन्तिम् गुरु गोविन्दसिंहकी कवितामें वर-भावकी प्रधानता है । गुरु नानकने अपने ग्रंथमें नामदेवजीकी भी वाणी संग्रह की है। नामदेवजीको जन्म (१३६३ ई०) महाराष्ट्रके दरजी-बंशमें हुआ था। रामानंदकी तरह भक्तिको ये भी दक्षिणसे उत्तर भारतमें ले आये थे। कुछ लोगोंकी धारणा है कि रुद्र सम्प्रदायके प्रवर्तक विध्नुस्वामी नामदेवके शिष्य थे। कहते हैं विष्णुस्वामी, बोहरदास, जल्लो, लड्डा प्रभृति शिष्योंने उनका समाधि-मंदिर तैयार कराया थः । पर इस बातका कोई पुष्ट प्रमाया अभी तक नहीं मिल सका है कि रुद्रसम्प्रदायवाले विश्णुस्वामी और ये विष्णुस्वामी एक ही थे। ६ सूफी साधनका विझवि मुसलमानी सलाके साथ ही साथ इस देशमें सूफी साधकोंको आगमन भी होने लग था। मुसलमानी धमकी विशेषता उसका एकेश्वरवाद है । यह समझना गलत है कि एकेश्वरवाद और अद्वैतवाद एक ही चीज़ है। एकेश्वरवादमें अनेक देवताओंके स्थानपर एक बड़े देवताकी सत्ता स्वीकार की जाती है। असल में हिन्दुओंके हुदेव-वादकै मूलमें एक अखण्ड ब्यापक भगवान्की सत्ता ही है। ब्रह्मा विष्णु शिब आदि देवता उसी भगवान्के गुणावतार है, यह बात इम आगे चल कर देखेंगे । जो कुछ भी हो, जहाँ तक हिन्दू जनताका संबंध था वह तक यह एकेश्वर-त्राद उनके लिए एक अपरिचित-सी वस्तु थी। फिर भी मुसलमानोंको एक गिरोह इस मतसे सन्तुष्ट नहीं था । सूफी यही लोग थे । वे भगवान्को एकेश्वर रूपमें नहीं बल्कि विशिष्टाद्वैतवादी बैदान्तियोंकी तरह मानते थे। यह बात मुसलमानी शास्त्रके अनुकूल नहीं थी । ऐसा विश्वास भी किया जाता है कि सूफियोंके मतवादमें वेदान्तका प्रत्यक्ष प्रभाव था । जो हो, मुसलमानोंमें जो लोग अत्यधिक शास्त्राचारपरीय थे | इन्हें बे-शरा' या शास्त्रबहिर्भूत मानते थे । इतिहास इनके ऊपर किये गये तरह तरहके अत्याचारों की कहानियाँ भी मिलती हैं। सूफियोंमें एक दल ऐसा भी था जो शास्त्रकै साथ सर्मजस्थ रखकर उपासना करता था। इन लोगों को ' बा-इरा' या शास्त्र-सम्मत कही गया है। श्री क्षितिमोहनसेनकी * मध्ययुगेर साधना देखिए ।) शुरू शुरूमें ये साचक पंजाब और सिन्धमें आकर बस गये और धीरे धीरे इनकी परम्परा सारे भारतवर्षमें फैल गई। उन दिनों भारतीय चिन्ताकी