पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/७४

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हिन्दी साहित्यकी भूमिका ४ सनकादि सम्प्रदाय—निम्बार्काचार्यको यह सुम्प्रदाय अब उतना अधिक प्रचलित नहीं है। उत्तर भारतमें अब भी यत्र तत्र इस संप्रदायके भक्त पाये जाते हैं। इस सम्प्रदायका एक नाम मात्रका शाखा-सम्प्रदाय राधावल्लभ हैं जिसे हिन्दीके प्रसिद्ध कवि गोस्वामी हितहरिवंशने प्रवर्तित किया था। इस सम्प्रदायमें राधिकाके मार्फत ही भक्त अपनेको भगवान्के पास निवेदित करता है। एक उपसम्प्रदाय सखी-भाववालोंका है जो इसी सम्प्रदायका अंग समझा जाता है। राधावल्लभी सम्प्रदायके प्रवर्तक हितजी ऊँचे दर्जे के कवि और महात्मा थे। ये संस्कृतके भी उत्तम कवि थे। राधा-सुधानिधि' नामको संस्कृत काव्य-ग्रंथ इन्हींका लिखा बताया जाता है । चैतन्य-सम्प्रदायवालोंका दावा है कि उक्त ग्रंथ किसी गौड़ीय गोस्वामीका लिखा हुआ है । उक्त ग्रंथके दोनों दावेदार पक्षों में इस बातके लिए काफी चख चख हो चुकी है। जो हो, इस विषयमें सन्देह नहीं कि गोस्वामी इितहरवंश हिन्दी और संस्कृतकै अच्छे विद्वान् थे और शास्त्रज्ञानमें दक्ष थे। ५ गुरु नानक और भक्त –दक्षिणके चार वैष्णव सम्प्रदाय किसी ने किसी रूपमें समग्र भक्ति आन्दोलनके साथ जिस प्रकार जड़ित हैं, उसकी चर्चा की गई। गुरु नानकके प्रवर्तत सिख सम्प्रदायका, इन वैष्णव सम्प्रदायों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। कुछ विद्वानोंकी रायमें गुरु नानकने कबीर साहबसे ज्ञान और भाक्तिकी उलेबना पाई थी। परन्तु ऐसे भी लोग हैं जो इस बातको स्वीकार करनेमें आपत्ति करते हैं। असलमें नानक और कबीरमें साधना-गत साम्य था, यई त अस्वीकार नहीं की जा सकती ! गुरु रामानन्दके पद भी उक्त ग्रन्थमैं संगृहीत हैं। इससे गुरु नानकका रामानन्द निर्गुण धराके साथ योग होना असम्भव नहीं है । नानक देवने जो कुछ कहा है वह उसी जातिकी चीज है जो कुवीर दादु आदि निर्गुणोपासक भक्तोंने कही है। लेकिन फिर भी दीक्षा-गत संबंध न होनेके कारण उसे प्रत्यक्ष सम्वन्ध नहीं कह सकते । गुरु-ग्रंथ-साहबमें ‘नानक के नामसे बहुतसे पद हैं, पर, विद्वानोंकी राय है कि वे समी गुरु नानकके लिखे नहीं हैं। बाद गुरुओंने भी जानक' नाम देकर ही पद लिखे हैं। नानकने, कहते हैं कि, हिन्दीमें बहुत कम पढ़ लिखे थे, जो कुछ हैं भी, उनमें पंजाबीका र्मिश्रण ब्रहुत है। कहते हैं, नानकने सैयद हुसेन नामक किसी मुसलमान साक्षकले भी दीक्षा ग्रहण की थी लेकिन इस बातको अभी तक कोई पक्क