पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/७३

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"भौंकी रक्ष हुई गीत काय-परंपराका,-भले ही कई मौखिक हो,-विकस' प्रतीत होता है। कहते हैं सूरदास-उद्धव अवदार थे और सूख्य भूविहे भगवान्क भजन करते थे। सूरदासके समीक्षकका दावई है कि संसारका कोई दूसरा कवि बाल्य-स्वभावका इतना सुन्दर चित्रण नहीं कर सका जितना सुन्दर सूरदास हाथों हुआ है। और इस विषयमें दो सप्त नहीं हो सुकृत कि बाल-स्वभाव, मातृ-प्रेम तथा संयोग और विप्रलंभ शृंगारमें सूरदास अतुलनीय हैं। मनोविकारोका ऐसा सरस चित्र अन्यत्र दुर्लभ हैं। उनका भ्रमर-गीत विरहका उमड़ता हुआ महासमुद्र है। इसमें बड़ी सरसता और मार्मिकताके साथ कविने वैराग्दचाद, ज्ञान- गरिमा और योग तथा निरोगवादका प्रत्याख्यान कराया है। | अष्ट-छपके अन्य कवियोंमें सूरके बाद इंददास ही अधिक प्रसिद्ध हैं। इनके ग्रंथोंमें वल्लभाचार्य के सिद्धान्तोंकी शास्त्रीय ढंगले प्रतिपादन किया गया है । अन्य अष्ट-छापियोंमें कवित्वकी अपेक्षा महात्मापन अधिक हैं। सज्ञ लीला-मानको प्रधानता देते हैं । और जैसा कि वल्लभाचार्यने बताया है कि “लीलाका कोई और प्रयोजन नहीं है, स्वयें लीला ही प्रयोजन है*, इन भक्त कवियोंके लीलाउनका भी कोई अन्य प्रयोजन नहीं हैं, स्वयं लीला-गान ही प्रयोजन है ।। गोसाई विठ्ठलनाथके सुपुत्र गोसाई गोकुलनाथजीने दोस बावद बैंचौकी बात' और 'चौरासी वैष्णवोंकी बात' नामक गद्य-ग्रंथ लिखे। गोरखनाथजीके दोसौ वर्ष बाद यही गद्य-ग्रंथ उपलब्छ होला है। इन दोनों ग्रंथों में मध्ययुगके अनेक वैष्णव भक्तोंकी कहानी लुप्त होनेसे बच गई है। इस शृंखलामै कुछ दूर जाकर पीयूषवष कवि रसखान हुए जो अपनी सरस रचनाके कारण साहित्यमें और तन्मय उपासनाके कारण भक्त की दुनियामें अमर हो गये हैं । रसखानकी कहानीमें बताया है कि वे पहले अनुचित प्रेमके शिकार थे, बादमें किसी भक्तने उन्हें भगवत्-प्रेमको रसिक बना दिया। ऐसी कहानी, किसी न किसी रूपमैं मध्ययुगके अनेक भक्तोंके बारे में कही जाती है। इस प्रकारकी कहानियाँ शायद उस युगमें भक्तोंकी प्रेम-भूलक साधनाकी ठीक ठीक व्याख्या हैं। किस प्रकार एक ही मनोविकार लोकसें एक रूप धारण करता है। और भगदद्विषयक होकर एकदम चिपरीत दूसरा रूप धारण करता है, यह बात मध्ययुगके भक्तोंमें बहुत स्पष्ट दृष्ट होती है ।

  • नहि लीलयाः किंचित् प्रयोजनमस्ति लीलाया इव प्रयोजनत्वात् ।।