पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/६८

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| हिन्दी साहित्यकी भूमिका सस्कृतक पंडित, उच्च ब्राह्मणकुलोत्पन्न और एक प्रभावशाली सम्प्रदायकै भावी गुरु थे, पर उन्होंने सबको त्याग दिया--देशभाषामें कविता लिखी, ब्राह्मण चाण्डाले तुकको राम-नामको उपदेय दिया। उनके हाथस छूकर लोहा सोना हो गया । रामानंदके बारह प्रधान शिष्य हैं जिनमें से कई नीच कही जानेवाली जातियों में उत्पन्न हुए थे। बारह शिष्य ये हैं-- • रैदास (चमार), कबीर (जुलाहा), धन्ना (जाट), सेना (नाई), पीपा(राजपूत) भवानंद, सुखानंद, अशानंद, सुरसुररानंद, परमानंद, महानंद, श्रीआनंद । कहते हैं आनंद नामधारी शिष्य पहले रामानुज सम्प्रदायके थे, बादमें उन्होंने रामानंदका साथ दिया । रामानंदके इन शिष्योमैंसे कई प्रसिद्ध कवि हो गये हैं। इनमें रविदास या रदास और कबीरदास बहुत प्रसिद्ध हुए हैं। कई भक्तोंके भक्तोंने इनके नामपर अलगसम्प्रदायका प्रवर्तन किया जिनमें कबीरपंथी, खाकी, मलूकदासी, रैदासी, और सेना-पंथी बहुत प्रसिद्ध हैं। रामानंद स्वयं खान-पानके प्रश्नपर ही अपने मूल सम्प्रदायसे विच्युत हुए थे अतएव वे अपने शिष्योंके उस प्रकार के आचार विचारपर जोर नहीं दिलवाते थे। इसी लिए बादके भक्तों में जाति पाँतिका प्रश्न ही जाता रहा। रामानंदने स्वयं रामचंद्रके अवतार और चरित्रको ही लोक और कालके उपयोगी बताया था । उपासनाके क्षेत्रमें ही वे जाति-पाँतिके बंधनको अस्वीकार करते थे पर अपने किसी भी व्यक्तिगत मतको उन्होंने शिष्योंपर लाद नहीं दिया। उनके मतसे गुरुको आकाशधर्मा होना चाहिए जो पैथिको बढ़नेके लिये उन्मुक्तता दे, न कि शिलधर्मी जो कि पौधेको अपने गुरुत्वसे दबाकर उसका विकास ही रोक दे । जो विद्वान् रामानंद-दिग्विजय आदि बाके. बने ग्रंथोंके आधार पर रामानंदकी इस महिमाको अस्वीकार करते हैं वे भूले जाते हैं कि सम्प्रदार्थ प्रतिष्ठा करनेवाले शिष्य सुदा लोकके साथ समझौता करके अपने गुरुके महत्त्वको कम किया करते हैं। । कीरदास रामानंदके मंत्र-बीजने सबसे अधिक प्रसार पाया । कबीर एक ही साथ तीन बड़ी बड़ी धाराको आत्मसात् कर सके थे लेकिन इससे उनके रामानंदके शिष्य होने में कोई बाधा नहीं पड़ी। ये तीन धारायें इस प्रकार हैं(२)उत्तर-पूर्वके नाथपंथ और सहजयानका मिश्रित रूप, (२) पश्चिमका सूफी