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पूरी हो रही है और मुझे प्रसन्नता है कि इसे प्रकाशित करनेका सौभाग्य भी मुझे मिल रहा है।

पर यहाँ मेरा यह आशय नहीं है कि जिन विद्वानोंने हिन्दी साहित्यके इतिहासपर कलम उठाई है, उन्होंने नवीन दृष्टिकोणका सर्वथा विचार ही नहीं किया। नहीं, बहुत कुछ किया है। पर इस पुस्तकमें इस दृष्टिकोणको जिस स्पष्टता और योग्यतासे व्यक्त किया गया है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।

दूसरे, यह पुस्तक हिन्दी साहित्यको इंतिहास नहीं है और न यह ऐसे किसी इतिहासका स्थान ही ले सकती है। आधुनिक इतिहासको यह अधिक स्पष्ट करती हैं और भविष्यमें लिखे जानेवाले इतिहासोंकी मार्गदर्शिका है। इसमें इसका महत्व है।



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