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भारतीय चिन्ताका स्वाभाविक विकास
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इनमें समानता ही बहुत देखी थी, असमानता कम । जहाँ तक शौरसेनीका सम्बन्ध है, यह निश्चित है कि वह पश्चिमी हिन्दीका पूर्व रूप है; पर महाराष्ट्री' शब्द भ्रमात्मक है । आधुनिक मराठी भाषा या महाराष्ट्र प्रान्तसे इसका कोई सम्बन्ध नहीं है। कई पंडितोंने व्यर्थ ही दोनोंको एक ही सिद्ध करनेका निरर्थक प्रयत्न किया है। नाटकों में स्त्रियाँ प्राकृत बोलती हैं। जब वे पद्यमें बोलती हैं तो महाराष्ट्री और गद्यमें बोलती हैं तो शौरसेनीका प्रयोग करती हैं । हॉर्नलेने एक बार इसीलिए कहा था कि शौरसेनी और महाराष्ट्री दो पृथक् भाषायें नहीं हैं बल्कि एक ही भाषाकी दो शैलियों है, एकका प्रयोग पद्यमें होता था और दूसरीका गद्यमें । यह बात मानी हुई है कि पद्यकी भाषा कुछ प्राचीनताश्लिष्ट और कोमलीकृत होती है। गद्यमें ठीक वैसी ही भाषा व्यवहृत नहीं भी होती । इस प्रकार असलमें वररुचिने दो ही भाषाओंकी चर्चा की है : शौरसेनी ( अर्थात् पश्चिमी हिन्दीकी पूर्ववर्ती भाषा ) और मागधी अर्थात् बिहारी, बंगाली, उड़िया, आदिको पूर्ववर्ती भाषा । पैशाची कोई स्वतन्त्र भाषा नहीं बल्कि आर्य भाषाका आर्येतर-भाषित विकृत रूप है । ठीक वैसी ही जैसी 'शान्तिनिकेतन' में काम करनेवाले संथालोंकी बँगला !

जहाँ तक हिन्दीका सम्बन्ध है उसमें इन दोनों जातियोंकी भाषाओंका स्थान है। असलमें शौरसेनी और मागधी इन दो भाषाओंके बोलनेवाले आर्यों की रहन सहन और स्वभाव भी बहुत कुछ भिन्न है । हॉर्नलेने इन दो श्रेणियोका निर्देश किया था। बादमें चलकर जब भाषा-दानका और भी अनुसंधान हुआ तो जाना गया कि असलमें वे दो भिन्न भिन्न समयमें आकर बसनेवाली दो भिन्न भिन्न आर्योंकी भाषायें है। भाषा-शास्त्रियों ने इन्हें ठीक यही नाम न देकर ' बहिरंग' और 'अन्तरंग' भाषायें नाम दिया | यह ध्यान देनेकी बात है कि भारतवर्षके साहित्योंमें हिन्दी साहित्य ही ऐसा है जिसमें इन दो भिन्न-श्रेणी के संस्कारवाले आर्यों ने समान भावसे काव्यादि रचना की। यह बात स्मरण रखने योग्य है कि यद्यपि प्राकृतमें लिखे गये काव्योंके बाद ही अपभ्रंश भाषामें काव्य लिखे गये परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि प्राकृत नामकी कोई भाषा पहले बोली जाती थी और अपभ्रंश नामकी भाषा बादमें बोली जाने लगी। असल में अपभ्रंश लोकमें प्रचलित भाषाका नाम है जो नाना काल और नाना स्थानमें नाना रूपमें बोली जाती थी और बोली जाती है। शुरू शुरू में इसको आभीरोंकी भाषा जरूर माना जाता था, पर