पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२९२

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स्त्री-रूप कवियों में प्रसिद्ध नहीं है, साधारणतः स्त्रीके अग्रभागके सौन्दर्यका वर्णन ही प्रसिद्ध है, पर अवस्थाविशेषमें (जैसे मानके समय मुँह फिराकर बैठी हुई अवस्थाम) पीठकी उपमा कञ्चन-पट्टिकासे दी जाती है। कटिका क्षीण वर्णन ही प्रशस्त माना गया है, इसकी पराकाष्ठा दिखाने के लिए कभी कभी कविगण उसका वर्णन शून्य रूपमें करते हैं। साधारणतः निम्नलिखित उपमाएँ कटिके लिए प्रसिद्ध हैं: सुईकी नोंक, शून्य, अणु, बेदी, सिंहकी कटि और मुष्टिग्राह्यता । कटिका अधोभाग--इस प्रदेशमें जघन, नितंभ, उरु, चरण, अँगूठा, नख, नूपुरध्वनि, गमन आदि वर्णनीय विषय हैं। गोवर्धनने जंघामें कान्ति, वृत्तानुपूर्वता, नातिदीर्घता, अत्यन्त मंदता और शीतलता : ये वर्णनीय गुण बताये हैं। वराहने कहा है कि जिस कुमारीके चरण स्निग्ध, उन्नत, आगेको पतले, और लाल नाखूनवाले हों; सम, उपचित, सुन्दर और गुप्त गुल्फ-समन्वित हों; उँगलियाँ सटी हुई तथा चरणतल कमलकी कान्तिवाला हो; उसके साथ विवाह करनेवाले पुरुषको राज्य प्राप्ति होती है। फिर, जिस कन्याकी जाँघे रोमरहित और शिराहीन हों; दोनों जानु सम हों; घुटनोंकी संधिया ऊबड़-खाबड़ न हों; उरु- देश धन और हाथीकी सैंडके समान हों; गुह्य देश विपुल और अश्वत्थ-पत्रके समान हों; श्रेणी, ललाट और उरु कछुएकी पीठकी भाँति बोचमें ऊँचे और दोनों ओर ढालू हों; मणिबंध गूढ़ तथा नितंब विस्तीण और मांसल हो; तो कन्या श्रीयुक्त होती है । इन गुणोंको लक्ष्य करके कवि जघनकी उपमा पुलिनसे; नितंबकी उपमा पीढ़ा, प्रस्तर, पृथ्वी, पहाड़, चक्र आदिसे; उरुकी उपमा हाथीकी सूंड, कदलीस्तंभ और करभस; चरणोंकी उपभा पल्लव, कमल, स्थल- पन और प्रवालसे और अँगूठेके नखको उपमा प्रबालसे देते हैं । गतिका संबंध इन्हीं अंगोंसे है अतः इनके ऐसा रहते गतिका मंद होना स्वाभाविक है। अतएव इसकी उपमा भी हाथी और इसके गमनसे दी गई है। नूपुरध्वनिकी उपमा सारस ईस आदिके शब्दोंके साथ देना प्रसिद्ध है। इस प्रकार कवियोंमें स्त्रीरूपका वर्णन प्रसिद्ध है। स्त्रीरूपके सम्बंध सामुद्रिक लक्षणोंक लिये गरुडपुराण ६४ अध्याय द्रष्टन्य है। १ अलंकारशेखर १३, ११-१२ । २ वृहत्संहिता ७०-२-३ । ३ मलङ्कारशेखर १३-१३-१४