पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२९१

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२६६ हिन्दी साहित्यकी भूमिका इन गुणोंके अनुरूप कवियोंमें इन अंगोंके लिए कई उपमान परम्परासे प्रचलित है। भुजाओंके लिए विस (कमल) लता मृणाल-नाल और विद्युदल्ली, तया हाथोंके लिए पद्म, पल्लव और विद्रुमकी उपमाएँ प्रसिद्ध है। सामुद्रिक लक्षणों में हाथकी अँगुलियोंकी कृशताको सौभाग्यका लक्षण बताया गया है। इसीलिए इनकी उपमा कभी कभी मूंगोंकी टहनियोंसे दी गई है। हथेलीका न बहुत ऊँचा और न बहुत नीचा होना आखण्ड सौभाग्यका कारण है । नखों के लिए कभी चन्द्रकला, कभी कुंदकी कली और कभी कभी (जैसा कि कवि-कल्पलता- कारने संग्रह किया है) पल्लव भी उपमानके रूपमें प्रयुक्त हुए है । वराइने इन अङ्गों में इन गुणोंका होना अखण्ड सौभाग्यका लक्षण माना है। स्त्रीका वक्षोदेश प्राचीन और मध्ययुगके कवियोंका विशेष रुचिकर अङ्ग रहा है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, इस अङ्गका औन्नत्य, श्यामाग्रता, विस्तृति, दृढ़ता, पाण्डुता आदि गुण काव्यशास्त्रियोंके वर्णनीय माने गये हैं। वराहने भी चतुलाकृत, धन, अविषम और कठिन उरस्यों को प्रशस्त कहा है (बृ०सं०७०-६)। इन गुणोंके लिए कवियोंमें ये उपमान रूढ़ हैं; पूगफल (सुपारी), कमल कमलकोरक, बिल्व (बेल), ताल, गुच्छ, हाथीका कुम्भ, पहाड़, धड़ा, शिव, चक्रवाक, सौवीर, जम्बीर, बीजपूर, समुद्र, छोलङ्ग आदि । सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार स्त्रियोंकी दक्षिणावर्त नाभि प्रशस्त मानी गई है। इस गुणको अभिव्यक्त करनेके लिए कवियोंमें निम्नलिखित उपमान प्रसिद्ध हैं: रसातल, आवर्त, हृद, कूप, नंद आदि । कभी कभी रक्तपुष्प और विवर या पुष्करिणीके कमलके साथ भी उसकी उपमा दी गई है। नामिके ऊपरसे जो हल्की रोम- राजि ऊपर उठी होती है वह भी कवियों का बहुत प्रिय विषय रहा है। गोवर्धनने उसमें मृदुता, श्यामता, सूक्ष्मता और नाभिगामिता : इन गुणोंको वर्णनीय कहा है। नाभिके निचले भागको वलि कहते हैं। तीन वलियोंका होना सौभाग्यका लक्षण माना गया है। इसीलिए इसकी उपमाके लिए नदी, उसकी तरंगे, सोपान, निश्रेणी आदि उपमाएँ कवियोंमें प्रसिद्ध हैं। पीठका वर्णन प्रायः १ अलंकारशेखर १३.९ और बृहत्संहिता स्त्रीलक्षणाध्याय । २ कविकल्पलता ! ३ वृहत्संहिता ७० अध्याय । ४-५ अलंकारशेखर पृ०४९ । ६ अलंकारशेखर १३,१०- ११। बृहत्संहिता ७०.४ | कविकल्पलता १३ । ८ दूरसंहिता ७० ।