पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२८९

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२६४ हिन्दी साहित्यकी भूमिका - क्रियायें द्योतित हैं। गुण ऊपर बताये गये हैं : क्रिया, कटाक्षपात या अपांग- दर्शन और सम्मोहनकारिता हैं। इसीलिए कटाक्षकी उपमा विषामृत, बाप और मदिरासे दी जाती है । इसके सिवा कटाक्षकी उपमा यमुनाकी तरंगों और भंगावलियोंसे दी गई है । नेत्रोंके रंगके प्रसंगमें कवियोंने श्वेत, रक्त और कृष्ण : इन तीन रंगोंमेंसे एक, दो या तीनोंका यथारुचि और यथासमय वर्णन किया है । श्वेत-वर्णनके कारण कभी कभी कुन्द पुष्पोंसे भी इनकी उपमा दी गई है। वीक्षण या देखनेकी क्रियाके संबंध कमलके पुष्पोंकी वर्षा या उनका उद्वमन आदि भी उपमित हुए हैं। नेत्रोंके आकारके लिए मत्स्य, कमल, कमलदल, मुग-नेत्र, खंजन आदि उपमान हैं। प्राचीन चित्रों और मर्तियों में इन वस्तुओंके सादृश्यरक्षी नेत्र बहुत पाये जाते हैं। मत्स्यकी उपमा केवल सादृश्यमें ही नहीं बल्कि सजलताके लिए भी व्यवहृत हुई है। सूरदासने सजल नयनोंकी उपमाके लिए मत्स्योंमें ही थोड़ी-सी योग्यता देखी थी। दोनों भृवोंका टेढ़ा होना, न बहुत मोटा और न बहुत मिला हुआ होना, सौभाग्यका लक्षण माना गया है। इसीलिए उनकी उपमा वल्ली, धनुष-विशेष- कर काम-धनुष, तरंग, मुंगावली और पल्लवोंसे दी जाती है। कभी कभी सर्प और कृपाण भी ध्रुवोंके उपमान कहे गये हैं । नासाके दोनों पुट समान होने चाहिए। इसके लिए तिलके फूलकी उपमा देते हैं। श्रीहर्षने सुझाया है कि इसका वर्णन कामके तरकशके रूपमें भी किया जाना चाहिए । इसके सिवा सुरोकी चोंचसे भी इसकी उपमा देनेकी रीति है"। अलंकारशेखरमें अन्यत्र (पृ. ४८) पाटली पुष्पको भी नासिकाका उपमान माना गया है। निःश्वासका सुगन्धित वर्णन करना भी कवियों में रूढ़ है। गोवर्धनने अधरों के लिए अत्यन्त माधुर्य, उच्छनता (स्फीति) और लालिमा ये तीन गुण वर्णनीय बताये हैं। वराहमिहिरने बन्धुजीवके समान लाल और अमांसल (पतले) अधरको प्रशस्त बताया है। इन गुणोंको ध्यान में १० शे० पृ. ४७ । २ अ० शे० १३-१५। ३ कविप्रसिद्धियाँ देखिए । ४ अa शे० पु० ४८१ ५ यु० सं० ७०-८ । ६ अलंकारशेखर १३-४। ७ वही पृ० ४८ ॥ ८१० सं०७०-७; गरुडपुराण ६४ अध्याय । ९ अ० शे० १३-५। १० अ० शे० टीका कामतूणीकृत्य नासां वर्ण्यते इति श्रीहर्षः । ११५० शे० पृ० ४८ । १२ गोवर्थन । १३ दृ० सं०७०-६।