पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२८८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६३ गोवर्धनके मतसे केशोंमें दीर्घता, कुटिलता, मृदुता, निविड़ता और नीलिमा आदि गुण वर्णन किझे जाने चाहिए। सामुद्रिक लक्षणों में केशोंका स्निग्ध, नील, मदु और कुंचित होना सुखकर बताया गया है और इनके विपरीत गुण असौभाग्य लक्षण माने गये हैं। दैवज्ञ कामधेनुके मतसे सूक्ष्म और नील रोम सौभाग्यके लक्षण हैं। इन गुणोंको बतानेके लिए कवियोंमें साधारणतः निम्न- लिखित उपमाएँ रूढ़ हैं : अन्धकार, शैवाल, मेघ, वह (मयूरपुच्छ), भ्रमरश्रेणी, चामर, यमुनातरग, नीलमणि, नीलकमल, आकाश, धूपका धुंआ, इत्यादि। केशकी वेणीके लिए साधारणतः सर्प, तलवार, भ्रमरपंक्ति और धम्मिल्ल या जूड़े के लिए राहुकी उपमाएँ प्रसिद्ध हैं। केशके बीचोंबीचकी माँगके लिए रास्ता, दण्ड,गंगाकी धारा आदि उपमायें दी जाती हैं। ललाटकी उपमाके लिए अष्टमीका चाँद या स्वर्णपट्टिका प्रसिद्ध उपमायें है। सामुद्रिक लक्षणोंमें ललाटका समतल होना अर्थात् न बहुत ऊँचा और न बहुत नीचा होना सौभाग्यका लक्षण माना जाता है । कपोलोंमें गोवर्धनके मतसे वर्णनीय गुण स्वच्छता है । इस गुणके लिए कविने इसका उपमान चंद्रमा और दपर्णको चुना है। नेत्रोंका वर्णन कवियोंने अनेक प्रकार किया है। स्निग्धता, विशालता, लोलता, कटाक्षोकी दीर्घता, नीलता, प्रान्तभागकी लालिमा, श्वेतता, बरौनियोंकी निविड़ता: ये आँखोंके गुण हैं 1 वराहने उन आँखोंको प्रशस्त कहा है जो नील कमलकी युति हरण करनेवाली हों"। इन गुणों का सादृश्य दिखानेके लिए कृषियोंने निम्नलिखित उपमेयोंका वर्णन भूरिशः किया है: मूग, मृग-नेत्र, कमल, कमल-पत्र, मत्स्य, खंजन, चकोर, इन तीनोंकी आँखें : केतक, भ्रमर, कामवाण आदि। ध्यान देनेकी बात यह है कि सभी उपमायें नेत्रों के आकारके ऊपर आधारित नहीं हैं। कुछमें उनके आकार, कुछमें गुण और कुछमें उनकी १ गोवर्धन (अ. शे० उद्धृत) 12 बृहत्संहिता ७०-९१३ देवशकामधेनु १६-३१ । ४ अलंकारशेखर १३-३ । ५ कविकल्पलता। ६ अलंकारशेखर १३-३, १३-४ । ७ बृहरसंहिता, ७०-८1८ अ० शे० से उद्धृत । ९ अल कारशेखर १३-४ | १० गोवर्धन! २६ बृहत्संहिता ७०-७, १२ म० शे०१३-६ ।