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हिन्दी साहित्यकी भूमिका

है और इस प्रकार आमरणोंको भारतीय काव्यमें स्त्री-रूपका एक आवश्यक अंग मान लिया गया है। इसीलिए दमनक-यष्टि और सपुष्पा लताके साथ ही स्त्री- शरीरकी तुलना करना रूढ हो गया है। कामशास्त्रमें चार प्रकारकी स्त्रियाँ मानी गई हैं। पद्मिनी, चित्रिणी, शंखिनी और हस्तिनी । इनमें प्रथम दो श्रेष्ठ हैं और इसीलिए सौन्दर्यका आदर्श उनके लक्षणोंसे भी ग्रहण किया गया है। उक्त गुण इन दो जातियोंकी स्त्रियों में भी पाये जाते हैं। दूसरी लक्ष्य करनेकी बात यह है कि कास्यमें, यदि विशेष कोई कारण न.हो तो स्त्रीको या तो सत्त्वगुण-प्रधान वर्णन करते हैं या रजोगुण-प्रधान (विलासिनी)। इसीलिए तम प्रधान कृष्णवर्णके साथ कोई उपमा नहीं दी जाती । स्त्री-शरीरके रंगके लिए साधारणतः रोचना, स्वर्ण, विद्युत्, हरिद्रा (हल्दी), बराटक (कौड़ी), चम्पा, केतकपुष्प (केवड़ा) आदिकी उपमा देते हैं। ये उपमान ही स्त्री- शरीरके रंगके लिए रूढ हो गये हैं। अ० शे०१३-२। मुखमण्डल, केश आदि-स्त्री-शरीरके वर्णनमें सबसे अधिक ध्यान मुखमण्डलके ऊपर दिया गया है। सारे मुखकी चन्द्रमा, कमल या दर्पण के साथ उपमा देना कवियों में रूढ़ हो गया है। साधारणतः केश, ललाट, कपोल, मुख, नासिका, नेत्र, अधर, ओष्ठ, दाँत, वाणी और कण्ठ : ये ही मुखमण्डलके वर्णनीय अवयव हैं। १ पद्मिनीका लक्षण- भवति कमलनेत्रा नासिकान्द्ररंधा अविरलकुच्चयुग्मा दीर्घकेशी कृशांगी। मृदुवचनसुशीला नृत्यगीतानुरका सकलतनुसुदेशा पद्मिनी पद्मगंधा। चित्रिणीका लक्षण- भवति रतिरसज्ञा नातिदीर्घा न खवा तिलकुसुमसुनासा स्निग्धदेहोत्पलाक्षी। कठिनधनकचाट्या सुंदरी सा सुशीला सकलगुणविचित्रा चित्रिणी चित्ररक्ता।-रतिरहस्स