पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२८५

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स्त्री-रूप स्त्रीका-रूप-स्त्रीके रूपके सम्बन्धमें अधिकांश रूढ़ियाँ सामुद्रिक लक्षणों, देवियोंके रूप तथा काम-शास्त्रीय विश्वासों आदिसे गृहीत हुई हैं। समय स्त्री- शरीरकी उपमा चन्द्रकला, कमल-रज्जु, शिरीषमाला, विद्युल्लता, तारा, सोनेकी लता या सोनेकी छड़ी, दमनक-यष्टि और दीप-शिखा आदिसे दी जाती है। लक्ष्य करनेकी बात है कि कवि-माण स्त्री-शरीरका वर्णन साधारणतः श्यामल रूपमें नहीं करते२ बल्कि श्वेत या गौर रूपमें करते हैं। वस्तुतः श्वेत और गौर भी कवियों के लिए एकार्थक शब्द है गोवर्धनके मतसे स्त्री-शरीरमें निम्न- लिखित कई गुण होने चाहिए : सौन्दर्य, मृदुता, कृशता, अतिकोमलता, कान्ति, उज्ज्वलता और आबल्य या सुकुमारता । स्त्री-शरीरके उपमेय इन गुणोंको ध्यानमें रख कर ही ढूँढ़े गये थे। इन गुणोंका नाना देवियोंके रूपसे संग्रहीत होना अनु- मानका विषय है। लक्ष्मी और गौरीके ध्यानमें स्वर्ण-प्रभा, अन्नपूर्णा और सरस्वतीके ध्यानमें सौकुमार्य या आवल्य, तुलसीके ध्यान में अंगका यष्टित्व और आबल्य, सावित्री और सरस्वतीके ध्यानमें औज्ज्वल्य तथा राधिका और सरस्वतीके ध्यान में कान्तिका उल्लेख पाया जाता है। इन देदियोंके रूपमें सौन्दर्यको प्रधान १ अलंकारशेखर १३-१ | २-३ कविप्रसिद्धियाँ देखिए । ४ अलंकारशेखर में उद्धृत । ५ लक्ष्मीका ध्यान- कान्त्या काश्चनसन्त्रिमा हिमगिरिप्रख्यैश्चतुर्भिगजै- - ईस्तोत्क्षिप्तहिरण्मयामृतवटैरासिच्यमानां श्रियम् । विभ्राणां वरमब्जयुग्भमभयं हस्तैः किरीटोज्ज्वलाम् क्षौमाबद्धनितम्बमागललिता बन्देऽरविन्दस्मिताम् ॥ पुरोहितदर्पण पृ. १६६