पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२८४

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कवि-प्रसिद्धियाँ २५९ और स कामे , पै, नु, किलास की गणना न (जिसके सिरपर चन्द्रमा है) तो कहना पर गङ्गामौलि (जिसके सिरपर गङ्गा है) कभी न कहना र और ल, ड और ळ, ब और व, श और स का भेद न मानना; चित्रकाव्यमें अनुस्वार-विसर्गकी गणना न करना; इव, वत, बा, हि, ही, ह, स्म, बत, बै, नु, किल, एव और च : इन अन्ययोंको पदके आदिमें न्यवहृत न करना भूत, इन्द्र, भारत और ईश : इन अन्यायोंको पदके आदिमें व्यवहृत न करना; भूत, इन्द्र, भारत और ईश : इन शब्दोंके पूर्व में महत् शब्दको निरर्थक ही प्रयोग करना (अर्थात् महेन्द्र और इन्द्र, महाभारत और भारत इत्यादिमें कोई अर्थ-भेद नहीं होता) और ब्राह्मण, वृष्टि, भोज्य, औषध, पथ्य आदिके पूर्ववर्ती महत् शब्दका दुष्ट अर्थमें प्रयोग करना।