पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२८३

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२५८ हिन्दी साहित्यकी भूमिका वर्णन करना: भुवनोंकी संख्या तीन, सात और चौदह कहकर वर्णन करनार, विद्याएँ अट्ठारह भी हैं और चार भी हैं और चौदह भी, यह स्वीकार करना, और मकरका वर्णन केवल समुद्र में करना । (२) आकाशमै मालिन्यका वर्णन करना; काम-वाणोंकी तरह स्त्रीके कटाक्षसे युवकजनका हृदय फटना । (३) सर्वत्र जलमें शैवालका वर्णन करना; स्त्रियोंके वर्णनमें रोमावली और त्रिवलीका वर्णन करना फिर वे चाहे हों या न हो; स्त्रियोंको साधारणतः श्याम वर्णन न करना और उनके स्तनपानका सामान्यतया उल्लेख न करना; देवताओंके प्रसङ्गमें पहले देवता और तब देवीका वर्णन, पर मनुष्यों के प्रसङ्गमें पहले नायिका तब नायकका वर्णन; मनुष्योंका सिरसे और देवताओंका पैरसे आरम्भ करना; स्थलचारी जीवोंका जलमें भी वर्णन करना; रणमैं मरे हुए पुरुषका सूर्यमण्डलको भेद करते हुए बाते वर्णन करना; लोकोंको सृष्टयादिमें महतूप और सूटयन्तमें सूक्ष्मरूप वर्णन करना; शब्दसे पहाड़का फटना; आकाशका सौ धनु अपर वर्णन करना; उपाधि और नामकी एकता, जैसे शङ्कर और वृषवाहन; चिह्न, वाहन आर ध्वजको एक ही वस्तु न मानना; शिवको शूली (शूलवाला ) तो कहना पर सी (सर्पवाला) न कहना; चन्द्रमाको शशी (शशवाला) कहना पर हरिणी ( हरिणवाला) न कहना; महादेवको इन्दुमौलि १ शब्दकल्पद्रुम तृतीय खण्ड ५२० पृष्ठपर उदधृत वहिपुराणका वचन | २ तीन भुवन, ये है-भूः, भुवः, स्वः, सात भुवन (लोक) इस प्रकार हैं-भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, सत्यः; इन्हीं में सप्तद्वीप अर्थात् जम्बू, शाक, कुश, क्रौञ्च, शाल्मक, मेद, पुष्करका योग करनेसे भुवन चौदह होते हैं-अग्निपुराण, गणमानाध्याय । २ प्रायश्चित्त तत्त्वमें विष्णुपुराणसे ये श्लोक उद्धृत है जिससे विद्याकी चौदह और अट्ठारह संख्याएँ प्रकट होती है--- अहानि वेदाश्चत्वारो मीमांसा न्यायविस्तरः। धर्मशास्त्रं पुराणं च विद्या होताश्चतुर्दश ॥ आयुर्वेदो धनुर्वेदो गान्धर्वश्चेति ते त्रयः । अर्थशास्त्रं चतुर्थश्च विद्या ह्यष्टादशैव ताः॥