पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२८२

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कवि-प्रसिद्धियाँ ३० सहकार (आम) कहते हैं, सुन्दरियोंके मुँहकी हवा पाकर सहकार-तरु या आमका वृक्ष कुसुमित हो जाता है। आम स्वनामधन्य वृक्ष है। अपने पल्लव, पुष्प और फलके रूपमें किसी अन्य वृक्षने सहृदयों और कलाकारोंको उसका आधा भी प्रभा वित नहीं किया जितना इस वृक्षने। कवियों ने सहकार-लताका भी वर्णन किया है। आम्मकी एक लता होती भी है । सुना है, लता रूपमें आम नई उपज है, पर कालिदासने सहकार-लताका वर्णन किया है। वह क्या कोरी कविकल्पना है ? शायद उसी युगमें आमकी लताएँ होने लगी थीं। कविने ठीक ही कहा है कि उपवनमें तो वैसे कितने ही पुष्प खिले हैं, पर पुष्पकेतुके विश्वविजयमै अकेला सहकार ही सहकारी है। ___३१ समानार्थक निम्नलिखित बातें भिन्नार्थक होते हुए भी एकार्थककी तरह प्रयुक्त की जाती हैं: (१) चन्द्रमामें शश और इरिणकी एकार्थता प्रसिद्ध है, (२) कामकी ध्वजाके प्रसङ्गमें मत्स्य और मकर समानार्थक मान लिये जाते हैं, (३) अत्रि- नेत्र और समुद्रोत्पन्न चन्द्रमा एकार्थक मान लिये जाते हैं, (४) नारायण और माधव एक ही देवता हैं, (५) दामोदर, शेष, कर्म आदि एकार्थक अवतार मान लिये गये हैं; (६) लक्ष्मीके अर्थमें कमला और सम्पद् शब्दकी एकता स्वीकार कर ली गई है, (७) द्वादश आदित्य एक ही माने जाते हैं, (८) स्वर्ण, पराग और अग्निके प्रसङ्गमें पीत और लोहितकी एकता मान ली गई है। ३२ सङ्कीर्ण कवि-प्रसिद्धियाँ (१) पर्वतमात्रमें सुवर्ण रत्न आदिका वर्णन; अन्धकारका मुष्टि-ब्राह्म और सूची-भेद्य होना; ज्योत्स्नाका घड़ेमें भरा जाना; कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्षमें ज्योत्स्ना और अन्धकारकी समानता होते हुए भी पहलेको तमोमय और दुसरेको चन्द्रिकामय वर्णन करना; शिव और चन्द्रमाका बहुकालसे जन्म होते हुए भी उन्हें बाल-रूपने वर्णन करना; समुद्रों की संख्या चार और सात दोनों १ मेघदूल २-१७ पर मल्लिनाथकी टीका । २ रघुबंश ९ । ३ काव्यमीमांसा । ४ अलंकारशेखर १५॥