पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२८१

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२५६ - हिन्दी साहित्यकी भूमिका रामावणमें वसन्त ऋतु में इसका खिलना वर्णित हैकालिदासने इस पुष्पका वर्षा और वसन्त दोनों ऋतुओंमें वर्णन किया है। जयदेवके मीतगोविन्दमें वसन्त- वर्णनमें इस पुष्यकी चर्चा है । असलमें यह वसन्तके अन्तमें खिलने लगता है और शरत्कालतक खिलता रहता है। राजशेखरने इसके वसन्तविकासका वर्णन किया है । शरत्कालमें इसके फूल बड़े मादक-गन्धी हो जाते हैं। इसीलिए निघण्टुकारोंने इसका एक नाम 'शीधुगन्ध' रखा है। बकुलका ही नाम केशर भी है। पौराणिक कथाके अनुसार कामके धनुषका ही यह पार्थिव रूप है। २९ शेफालिका ( हरसिङ्गार) शेफालिकाके पुष्प कविसमयके अनुसार केवल रातमें झड़ते हैं। शेफाली या शेफालिका नामके दो वृक्ष वैद्यक शास्त्र में प्रसिद्ध हैं, एक निर्गुण्डी और दूसरा हरसिङ्गार" । पुष्पोंके प्रसङ्ग में कविगण दूसरेका ही वर्णन करते हैं। निर्गुण्डीको वैद्योंने पुष्पवर्गमें नहीं माना है। शेफाली सारे भारतवर्ष में पाई जाती है। कोंकणमें यह वर्षामें खिलती है और अन्यान्य प्रदेशों में वर्षाके अन्तमें खिलने लगती है और सार शरत्कालतक खिलती रहती है । इसके पुष्प श्वेत रङ्गके बड़े ही कोमल होते हैं। पुष्पनाल इषत् पिङ्गलाभ लाल रङ्गक होते हैं । रातको ही शेफाली विकसित होकर वनभूमिको सुरभिसिक्त कर देती है। उषःकाल होते ही इसके पुष्प झड़ने लगते हैं और सूर्योदय होते होते वनभूमि श्वेतपुष्पोंसे आवृत हो जाती है। सूर्योदयके बाद तक भी पुष्प झड़ते रहते हैं, पर कविजन इसका वर्णन सूर्योदयके पहले ही करते हैं। कालिदासने शरदऋतुमें इस पुष्पका वर्णन किया है१° । राजशेखरने अपनी विद्धशालभंजिकामें चन्द्रके बिना शेफालीके न खिल- नेका उल्लेख किया है । राजशेखरने अन्यत्र शरद् ऋतुमें इस पुष्पका विकसित होना लक्ष्य किया है। १२ उनकी कान्यमीमांसामें उदाहृत एक चन्द्रोदय-वर्णन-परक श्लोकसे मालूम होता है कि उस समय शेफालिकाके पुष्य झड़ चुके होते हैं। १ कालिदासेर पाखी पृ १० । २ मेघद्त । ३ सश्रुत, सूत्र० ४६-१०५ टीका । ४ काव्यमीमांसा १४, साहित्यदर्पण ७-२३; अलंकारशेखर मरीचि १५ । ५ बृहत्संहिता ५६-४-५ १६ रामायण ४-१३-६-६४ | ७ ऋतुसंहार ३ । ८ काम्यमीमांसा १८% शरवणेन । ९ मेघदूत १-१७ और कुमारसम्भव ३-२६ पर मल्लिनाथकी टीका । १० मेष०२-१७ । ११ रघुवंश ९ ॥