पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२८०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कवि-प्रसिद्धियाँ है। इससे जान पड़ता है कि उक्त कविप्रसिद्धि नितान्त अमूलक नहीं है। इतना जरूर है कि सभी हंस मानसरोवरमें ही नहीं जाते । हिमालयके यात्रियोंने यह भी लक्ष्य किया है कि कभी कभी हिमालयकी ही झीलों में अनुकूल वास-मिलने- पर ये पक्षी अन्यत्र नहीं जाते। यक्षके उद्यानकी वापीमें वास करनेवाले इंस मेघोंको देखकर भी मानसरोवरके लिए उत्कृण्ठित नहीं हुए थे २ ! कारण्डव और कादम्ब आदि पक्षी भी हंसकी ही जातिके हैं। अति धूसर पक्षका कलहंस कादम्ब कहलाता है और कारण्डव एक जातिका शुक्ल हंस है। कालिदासने वर्षाकालमें इनका भी प्रव्रजन वर्णन किया है। एक दूसरा कवि-समय है कि जलाशयमात्रमें इसका वर्णन होना चाहिए । वराहमिहिरने उन वापियोंको शुभ-फलप्रद बताया है जिनमें सदैव इंसादि पक्षियों- का वास रहे। पक्षितत्वज्ञोंने लक्ष्य किया है कि अक्टूबरसे जुलाईतक हंस जातिके अनेक पक्षी सारे भारतकी स्वच्छतोया नदियों और जलाशयोंमें वास करते हैं । कई जातिके जलचारी पक्षी तो साल-भर इन जलाशयोंमें रहते हैं। रामायण में वसन्तकालमें इस पक्षियों का वर्णन मिलता है। महाकवि कालिदासने ऋतु- संहारमें शरत्काल में और शिशिर ऋतुमें इन पक्षियों का वर्णन किया है। राज- शेखरने भी शरत्कालमें इन पक्षियोंका वर्णन किया है। २८ बकुल (बकुल) सुन्दरियोंकी मुख-मदिरासे सिंचकर बकुल-पुष्प कुसुमित हो जाता है । बकुलका हिन्दी नाम मौलसिरी है। अपने विशाल आकार, घनी छाया और आमोदमय पुष्पके कारण यह वृक्ष साधारण जनता और कवि दोनों का परम प्रिय है। राजशेखरकृत काव्य-मीमांसा ऊपरकी कवि-प्रसिद्धिका उल्लेख नहीं है, पर इस ग्रन्थसे बकुलके इस गुणका समर्थन होता है । कालिदासके मेवदत" और रघुवंश°१ आदि ग्रन्थोंसे इस वृक्षके इस गुणका समर्थन होता है। १रामायण ४-१-७८ १२ ऋतुसंहार । ३गीतगोविन्द, प्रथम सर्ग। ४ काव्यमीमांसा १८ अध्याय । ५ देखिए शार्षक ७ [१] ६ काव्यमीमांना १४, अलङ्कारहशेखर १५ इत्यादि। ७ अमरकोष, वनौषधिवर्ग ७०। ८ B.D. Basl: Indian Medical PlantsIP.5561 ९ काव्यमीमांसा १४ । १० अतुसंहार ३-१५/ ११ विद्ध- शालभजिका २-१९ । १२ काव्यमीमांसा १८ शरवर्णनम् । १३ काव्यमीमांसा १ ।