पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२७८

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कवि-प्रसिद्धियाँ २५३ परलोक (मेघोंसे मतलब है), सौराष्ट्र, ताम्रपर्ण, पारसु, कौवेर, पाण्ड्य, विराट्, और मुक्ता ।। जिन चीज़ोंसे मोती पैदा होते हैं उनमें स्वातिका जल पड़नेसे ही मोती हो सकते हैं, यह पौराणिक विश्वास है । यह सब होते हुए भी ऋविजन केवल ताम्रपर्णी नदीमें ही मोतियोंका वर्णन करते है। २६ रङ्ग कवि-समयके अनुसार यश, दास आदिका रङ्ग सफेद, अपयश और पाप आदिका काला, क्रोध और अनुराग आदिका लाल होता है। फूलों में कुन्द-कुड्मलका रङ्ग लाल नहीं वर्णन किया जाता; कमल-मुकुलका हरा और प्रियंगु-पुष्पोंका रङ्ग पीत नहीं वर्णित होता। सामान्यतः मणि-माणिक्यका रङ्ग लाल४. पुष्पोंका सफेद ५ और मेघका काला' माना जाता है। १ काव्यमीमांसा १४१२ साव्यमीमांसा, अध्याय; १४-१६ अलङ्कारशेखर १५ इत्यादि । ३ अलङ्कारशेखर लाल वर्णनके लिए इन वस्तुओंका और निर्देश करता है. जपा, रल, सूर्य, पद्म, पल्लव, बन्दूक, दाडिम और करज ( अंगुली । ४ सामान्यतया श्वेतरङ्गके लिए अलङ्का- रशेखर और योग करता है-पुष्प, जल, छत्र, वन ५कालेके लिए अलङ्ककारशेखर और कहता है.-शैल, मेष, वृक्ष, समुद्र, लता, भिल्ल, असुर, पङ्क, और केश । पोलेके लिए अलंकारशेखर निर्देश करता है-शालिमण्डूक, वस्कल और पराग | ६ अन्यत्र (१७. अध्याय ) अलकारशेखर निम्रलिखित भावसे रंगका निर्देश करता है.-- श्वेत--चन्द्र, इन्द्र के घोड़े, शिव, नारद, भार्गव, हली, शेष, सर्प, इन्द्रका हाथी,सिंह, सौंथ, शरत् कालके मेव, सूर्यकान्त, चन्द्रकांतमणि, केंचुल, मन्दार, हिमालय, हिम, हास, मृणाल, स्वगंगा, इस्तिदन्त, अभ्रक, सिकता, अमृत, लोध्र, गुण, कैरव, शर्करा । नील---कृष्ण, चन्द्रचिह्न, व्यास, राम, अर्जुन, शनि, द्रौपदी, काली, राजपट्ट, विदूरज,. विष, आकाश, कुहू, शम्द, अगुरु, पाप, तम, रात्रि, अद्भुत और शूचार-रस, मद, ताप, बाण, युद्ध, बलरामके बरू, यम, राक्षस, खंजन और मोरका मण्ठ, कृत्या, छाया, गज, अङ्गार, और दुष्टमा अन्तःकरण । लाल---क्षात्रधर्म, त्रेता, रौद्ररस, चकोर, कोकिल-पारावतके नेत्र, कपिमुख, तेजःसार., मंगल, कुंकुम, तक्षक, जिह्वा, इन्द्ररोग, खद्योत, विद्युत, कुञ्जरबिंदु ।