पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२७७

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२५२ हिन्दी साहित्यकी भूमिका लेकिन कवि-समयके अनुसार इसका वर्णन वसन्तमें नहीं होना चाहिए। मालतीके इस दो बार पुष्पोद्गमको देख कर ही कवि रवीन्द्रनाथने एक गानमें कहा है-हेमालती, तुममें यह दुविधा क्यों है ? कालिदासने वर्षा और शरत् दोनों ऋतुओंमें मालती-पुष्पका विकसित होना वर्णन किया है। रामा- यणमें आदिकविने वर्षा-ऋतुके मेघाच्छन्न आकाशके वर्णनके सिलसिले में कहा है कि मालतीके विकसित होनेसे ही सूर्यके अन्त हो जानेका अनुमान होता है। सुप्रसिद्ध ज्योतिषी भास्कराचार्यने ऋतुचिह्नों का वर्णन करते समय मालतीका वर्षामें खिलना ही वर्णन किया है। फिर भी संस्कृत-साहित्यमें मालतीका वसन्त- विकास-वर्णन कम नहीं है। वाल्मीकि रामायणमें तो इसका वसन्त-विकास वर्णित है ही, प्राचीन कवि च्यासदास और विज्जकाका भी वर्णन इस बातका समर्थक है। मालतीका एक नाम जाती भी है। वैद्यकके सभी निघंटुकार इस बातको मानते हैं, लेकिन भावप्रकाशमें जाती और मालती ये जुदी लताएँ मान ली गई हैं और ग्रन्थकारने जातीका भाषा-नाम चमेली बताया है। वनौषधि- दर्पणकार इस सिद्धान्त से बड़े चक्कर में पड़ गये हैं और इस निर्णयपर पहुँचे हैं कि भावप्रकाशके पहलेके ग्रंथों में जाती और मालती एक हैं और बादके ग्रंथोंमें जातीका अर्थ चमेली है और मालतीका मालती हम इस विचित्र सिद्धान्तकी कोई ज़रूरत नहीं समझते। २५ मुक्ता (मोती) कविप्रसिद्धि है कि केवल ताम्रपर्णी नदीमें ही मोती पैदा होते हैं । शास्त्रोंके अनुसार हाथी, मेघ, सूअर, मछली, शुक्ति (सीपी), बाँस, साँप और मंढक, --इन आठ चीज़ोंसे मोती पैदा होते हैं। गरुड़ पुराण मेंढकवाले मोतीकी चर्चा नहीं करता और इसके मतसे इन सबमें शुक्स्युद्भव मोती ही श्रेष्ठ है। यही एक-मात्र प्रकाशमान और वेध्य होता है। शंख और हाथीसे पैदा हुआ मोती साधम है। गरुड़ पुराणके अनुसार मोती आठ आकरोंसे आते हैं: सिंहल, १ काव्यमीमांसा १४; साहित्यदर्पण ७-२५:अलंकारशेखर १५ । २ ऋतुसंहार २-२४ । वही ३-२४ वाल्मीकि रा०४-२८-५२५रा० ४-१-७६ । ६ सुभाषितावली १६५८ 1 ७ काव्यप्रकाश में उदघत । ८ बनौषधिदर्पण पृ० ५५१-२॥ ९ काव्य- मीमांसा १४, अलंकारशेखर १५, आदि । १० गरुडपुराण, अध्याय ६९-४, शब्दकल्पद्रुम ।