पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२७६

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कवि-प्रसिद्धियाँ परलोक (मत्रोंसे मतलब है), सौराष्ट्र, ताम्रपर्ण, पारसु, कौवेर, पाण्ड्य, विराट्, और मुक्ता।। जिन चीजोंसे मोती पैदा होते हैं उनमें स्वातिका जल पढ़नेसे ही मोती हो सकते हैं, यह पौराणिक विश्वास है। यह सब होते हुए भी कविजन केवल ताम्रपर्णी नदीमें ही मोतियों का वर्णन करते है। कवि-समयके अनुसार यश, हास आदिका रङ्ग सफेद, अपयश और पाप आदिका काला, क्रोध और अनुराग आदिका लाल होता है। फूलों में कुन्द-कुड्मलका रङ्ग लाल नहीं वर्णन किया जाता; कमल-मुकुलका इरा और प्रियंगु-पुष्पोंका रङ्ग पीत नहीं वर्णित होता। सामान्यतः मणि-माणिक्यका रङ्ग लाल, युष्पोंका सफेद ५ और मेधका काला माना जाता है। १ काव्यमीमांसा १४} २ काव्यमीमांसा, अध्याय); १४-१६ अलङ्कारशेखर १५ इत्यादि । ३ अलङ्कारशेखर लाल वर्णनके लिए इन वस्तुओंका और निर्देश करता है--जपा, रत्न, सूर्य, प, पल्लव, बन्दूक, दाडिम और करज ( अंगुली । ४ सामान्यतया श्वतरजके लिए अलङ्का- रशेखर और योग करता है.----पुष्प, जल, छन्न, वस्त्र ५ काले के लिए अलङ्ककारशेखर और कहता है---शैल, मेघ, बृक्ष, समुद्र, लता, मिल, असुर, पङ्क, और केश । पीलेके लिए अलंकारशेखर निर्देश करता है शालिमण्डूक, वल्कल और पराग । ६ अन्यत्र (१७. अध्याय ) अलङ्कारशेखर निम्रलिखित भावसे रंगका निर्देश करता है----- श्वेत-चन्द्र, इन्द्र के घोड़े, शिव,नारद, भार्गव, हली, शेष, सर्प, इन्द्रका हाथी,सिंह, सौष, शरत् कालके मेघ, सूर्यकान्त, चन्द्रकांतमाणि, केचुल, मन्दार, हिमालय, हिमा, हास, मृणाल, स्वगंगा, हस्तिदन्त, अभ्रक, सिकता, अमृत, लोध्र, गुण, कैरव, शर्करा । नील-कृष्णा, चन्द्रचिह्न, व्यास, राम, अर्जुन, शनि, द्रौपदी, काली, राजपट्ट, विदुरज,. विष, आकाश, कुहू, शस्त्र, अगुरू, पाप, तम, रात्रि, अद्भुत और शृंगाररस, मद, ताप, बाण, शुद्ध, बलरामके वस्त्र, यम, राक्षस, खंजन और मोरका कण्ठ, कृत्या, छाया, गज, अङ्गार, और दुष्टका अन्त:करण। लाल---क्षानधर्म, नेता, रौद्ररस, चकोर, कोकिल-पारावतके नेत्र, कपिमुख, नंगल, कुंकुम, तक्षक, जिला, इन्द्रगोप, खद्योत, विद्युत, कुञ्जरबिंदु ।