पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२७४

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कवि-प्रसिद्धियाँ २५१ - और इन्द्रने दुष्यन्तको मन्दार-माला दी थी। कुमारसंभव, रघुवंश विक्रमोर्वशी में महाकविने कई जगह इस मोहक पुश्पका वर्णन किया है। कवि-समयके अनुसार मयूर केवल वर्षा-ऋतुमें नृत्य करते हैं। भारतवर्षमें दो जातिके मयूर पाये जाते हैं, एकका कंठ नीला होता है और अपांग (दृष्टि) शुक्ल होता है। दूसरेका कंठ नील नहीं होता। पहली जातिका मोर ही भारतवर्षमें सर्वत्र पाया जाता है। कवि-उमयके अनुसार मयूरका कंठ नील ही वर्णन करना चाहिए। कालिदासने इसी जातिके मयूरका वर्णन किया है। जूनसे लेकर सितम्बर तक मयूरोंके गर्भाधान और सहवासका समय है। मयूरी- को प्रलब्ध करने के लिए इस समय पुरुष-मयूर प्रमत्त भावसे नृत्य करता है। मेष देखकर पर्वतोंपर इसका मनोमोहक नृत्य और समुत्सुक केकाध्वनि करना एक निरतिशय नैसर्गिक व्यापार है। वर्षात्रतुके अन्त में जब गर्भाधान हो जाता है, तब इसका पुच्छ (वई) स्खलित हो जाता है। फिर इसका नृत्य या तो होता ही नहीं, या क्वचित् कदाचित् दिख भी गया तो मनोहर नहीं होता। रामायणमैं इन गलितवई पक्षियोंका उल्लेख है ६ । कालिदासने भी इस वईख- लनन्यापारको लक्ष्य किया था। मेघदूतसे जान पड़ता है कि भवानी इस स्वयं- स्खलित वहको कानों में धारण करती थीं। गोपवेशधारी विष्णु भी स्खलित वहका आभरण धारण करते थे। पक्षितत्वज्ञोंने इस बातपर ज़ोर ज़रूर दिया है कि मयूर वर्षाकालमें प्रमत्त भावसे नृत्य करता है, पर इसका अन्य ऋतुओं में नृत्य भी विरल-दर्शन नहीं है। रामायणमें वसन्त-वर्णनके अवसरपर आदि कविने मयूरियोंसे घिरे हुए मद- माछत और प्रनृत्वमान मयूरों का वर्णन किया है। २४ मालती मालती-लता सालमें दो भार फूलती है, वसन्तमें और वर्षा तथा शरतमें। १ अभिशानशाकुन्तलम् ७-२१२ कुमारसम्भव ५-८०, विक्रमोर्वशी ४--३५ ।। ३ काव्यमीमांसा १४, साहित्यदर्पण ७-२५ : ४ मेघदूत । ५Home and Mare shall, The Garne Birds of Ingia, Burmhaand Ceelon, Vol. III, P.427.६रा०४-३०-४० और ४-३०-३३ । ७ रा०४,१,३६-३७. और भी देखिए ४,१,३८-३९-४०