पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२७२

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कवि-प्रसिद्धियाँ निघंटु ' और चक्रदत्तके २ अनुसार प्रियंगुमै सुगंध होनी चाहिए। कविने ऋतु- संहारमें सुगंधित द्रन्योंके साथ ही प्रियंगुका वर्णन किया है । बृहत्संहिताके गन्ध- युक्ति प्रकरणमें प्रियंगुका उल्लेख सुगंधित द्रव्योंमें है । चरकने प्रियंगु और चन्दन-चर्चित रमणियोंके कोमल स्पर्शको दाहकी महौषध बताया है। पर हमें स्त्रियों के स्पर्शसे प्रियंगु-पुष्पके विकसित होनेका उदाहरण कायमें नहीं मिला। 'प्रियंगुके विषयमें दूसरा कविसमय है कि यद्यपि इसके पुष्प पीत वर्णके होते हैं तथापि उसे पीत नहीं वर्णन करना चाहिए । राजशेखरने उदाहरण देने के लिए जो श्लोक उद्धृत किया है उसमें प्रियंगु-पुष्पको श्याम रंगका बताया गया है । प्रियंगुका एक नाम श्यामा लता भी है। कविराज विरजादास गुप्तने बृहन्निघण्टु- रत्नाकरसे उद्धत करके बताया है कि इस वृक्षका एक नाम 'कृष्ण पुष्पी' भी है । इसपरसे वे अनुमान करते हैं कि यह फूल काला होता होगा। डिमक खोरीने १० अपनी पुस्तकके प्रथम खंड, पृ० ३४३ पर प्रियंगुके पुष्पोंका पीला होना लिखा है किन्तु एक दूसरे वनस्पतिशास्त्री माइटने 'फिगर्स आफ इंडियन प्लॉट्स' नामक ग्रन्थक प्रथम खण्ड, पृ० १६६ पर इसका जो चित्र दिया है उससे डिमकके मतका ऐक्य नहीं सिद्ध होता। - नवग्रह-स्तोत्रमें बुधके प्रणाम-मन्त्रमें प्रियंगु-कलिकाका श्याम होना उल्लि- खित है } किन्तु यह लक्ष्य करने की बात है कि बुधके ध्यानमै सर्वत्र बुधका वर्ण पीत बताया गया है। यहाँ अचानक प्रियंगु-कालिकाके समान बुधका श्याम वर्ण होना आश्चर्यका विषय ही है। क्या यह अनुमान असंगत होगा कि पहले पाठ प्रियंगुकलिका-पीतं' था, बादमें किसी कविसमयके जानकारने 'पीतं' को काटकर 'श्याम' कर दिया। यह ज़रूर है कि ज्योतिष-ग्रन्थों के अनुसार बुधका वर्ण दूर्वाश्याम है ११ १ वनौषधिदर्पण, पृ० ४४६ । २ चरकसंहिता टीका । ३ ऋतुसंडार ६-१२ । ४ बृहत्संहिता ७७-२९ । ५ दाहचिकित्सा । ६ काव्यमीमांसा १५, अलंकारशेखर १५, अलंकारचिन्तामणि, पृ० ७.८ इत्यादि | ७ काव्यमीमांसा १५१ ८ ऋतुसंहार ६-१२ टीका। ९ बनौषधिदर्पण, पृ. ४४५। १० वनौषधिदपगमें उद्धृत । ११ बृहज्जातक ३-२॥