पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२७१

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२४८ हिन्दी साहित्यकी भूमिका पानी में घुसे होते हैं। मूल अँगूठेकी तरह मसुण और मोटा होता है। शतदल पाके दल २० से लेकर ७० तक पाये जाते हैं। फूल जिस नालपर खिला होता है उसे मृणाल कहते हैं। इसमें अनतिसूक्ष्म काँटे होते हैं। श्वेतपडाका रङ्ग कुन्दके फूलके समान होता है। भारतीय साहित्य, कला और संस्कृतिमें पद्मका बहुत बड़ा स्थान है। ऐसा भारतीय कलाकार या कवि, मनीषी या साधक नहीं पाया जायगा जिसने इस पुष्पको किसी न किसी रूपमें अपना आदर्श न माना हो। जहाँ वह अपने सौन्दर्यके कारण कवियोंका परम प्रिय रहा है, वहाँ वह सहज निःशङ्क होनेके कारण साधकोंका भी आदर्श रहा है । यद्यपि वह बहते पानीमें प्रायः नहीं पाया जाता पर कवियोंने नदीमें इसका वर्णन किया है। महाकवि कालिदासने वर्षा- कालमै शिप्रानदीमें कमल-पुषोंका उल्लेख किया है। वे वसन्त तथा ग्रीष्ममें भी इस पुष्पको न भूल सके थे। राजशेखरने कविसमयके प्रसनमें पद्मके दिवाविकासका उल्लेख नहीं किया 'पर साहित्यदर्पणमें इस बातकी चर्चा कहना न होगा कि कवियोंने कमलका दिनमै विकसित होना वर्णन किया है। राजशेखरके उदाहृत एक श्लोकसे जान पड़ता है कि कविने आदिवराहके श्वेत दाँतोंसे पुण्डरीक-मुकुलकी उपमा दी है। असलमें पुण्डरीकके मुकुल सफेद नहीं होते। राजशेखरने यह बात लक्ष्य भी की थी। पद्ममें लक्ष्मीका निवास तो भारतीय कवियोंका एक अतिपरिचित विषय है। २० प्रियङ्ग कविसमयके अनुसार प्रियंगु स्त्रियों के स्पर्शसे विकसित हो उठता है। प्राचीन युगमें महलों और बागीचोंके अग्रभागमें प्रियंगुके वृक्ष लगाये जाते थे। लेकिन आजकल इस पुष्पके बारे में पर्याप्त मतभेद है। बङ्गाल और बिहार के पंसारी एक तरहका प्रियंगु-फल बेचते हैं जो सुगन्धित नहीं होता; पर अमरकोष,धन्वन्तरि १वनौषधिदर्पण पृ० ४०१-२ । मेषदूत १-३०१३ कुमारसम्भव ३.३७ । ४ ऋतु- संहार १-२८ । ५ सुभाषितरत्नभा० ३८९ । ६ काव्यमीमांसा २४ । ७ सुभाषितरत- आण्डागार पृ० ३९०1८ दे० शी०२ दि. १९ वृहत्संहिता ५५-३११० अमर० ४-५५ ॥