पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२७०

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कवि-प्रसिद्धियाँ दूसरी प्रसिद्धि यह है कि नीलोत्पल दिन में नहीं खिल्ता, रातमें विकसित होता है । डल्हणने सौगन्धिक कमलको चंद्रिका विकासी कहा है । सौगन्धिक नीलकमलको ही कहते हैं ('पद्म देखिए)| काव्यमीमांसामें इस प्रसिद्धिका समर्धक श्लोक उदाहृत है। १२ पझ (कमल) कविसमय के अनुसार (१) पन दिनमें खिलते हैं (नदी समुद्र आदिमें भी होते हैं५), (२) उनके मुकुल हरे नहीं होते हैं , (३) उनके पुष्पमें लक्ष्मीका वास होता है, और (४) हेमन्त तथा शिशिरके सिवा अन्य सभी ऋतुओं में उनका वर्णन होता है। पद्मके कई भेद होते हैं। धन्वन्तरीय निवष्टके मतसे ये सात प्रकारके होते हैं-पुण्डरीक (अत्यन्त श्वेत), सौगन्धिक (नील पद्म), रक्त पद्म, कुमुद और तीन प्रकारके क्षुद्र उत्पल । डल्हणके मतसे सौगन्धिक कमल चन्द्रिका पा कर विकसित होता है और इसका एक नाम गर्दभपुष्प है। किन्तु चक्रपाणिने इसका भाषा नाम शुन्धी लिखा है। चक्रपाशि बङ्गाली थे किन्तु बङ्गालमें शुन्धी नामसे आजकल जो कमल प्रसिद्ध है वह अत्यन्त सुरभित नहीं होला, जैसा कि डलहणके कथनानुसार उसे होना चाहिए. वह नील भी नहीं होता। दीये. काल तक साफ न किये हुए कर्दम-बहुल जलाशयों में ही कमल खिला करता है। लक्ष्य करनेकी बात है कि यद्यपि धन्वंतरीय-निघण्टु के मतसे सौगन्धिक नील होता है और डल्हण इसे चंद्रिका विकासी मानते हैं पर वाल्मीकीय रामायणके समय नील पन और सौगन्धिक एक ही चीज़ नहीं समझे जाले थे। वसन्त-वर्णनके प्रसङ्गमें आदि कविने एक ही जगह पद्म, सौगन्धिक और नीलपनका खिलना वर्णन किया है। ११ कोकनद या रक्तपद्म ग्रीष्ममें खिलता है और इसके फल वर्षार्मे पक जाते हैं । इसके फूल कुछ कुछ गुलाबी रङ्गके और दलोंके अग्रभाग क्रमशः लाल होते हैं। कमलके मूल बड़ी दूर तक काव्यमीमांसा १४, अलङ्कारशेखर १५ अलङ्कारचिन्तामणि ८१२ सुश्रुत सूत्र० १३-१३ दीका! ३ काव्यमीमांना, अध्याय १४॥ ४ साहित्यदर्पण ७-२५ । ५, ६ कादमीमांसा २४ अलंकारशेखर १५ इत्यादि । ७ अलेकारशेखर मरीचि १५४८ वनौषधिदर्पण पृ. ४०१० चरकसहिता, २० ४ अध्याच टीका । १०तुश्रुत, सत्रस्थान १३-१३ टीका । ११ रामायण ५-१ }