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भारतीय चिन्ताका स्वाभाविक विकास
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होता था) और न मुसलमानी धर्मके समान सामाजिक भातृभावके आदर्श- द्वारा सुसंगठित ही था। असल में जिस अर्थमें मुसलमान या ईसाई धर्म धर्म हैं वह अर्थ हिन्दू धर्मके लिए कभी लागू हो ही नहीं सकता । दक्षिणमें शंकरा- चार्य और माध्वाचार्य सम्प्रदायोंके सुसंगठित मठ हैं पर उनका भी प्रभाव उस जातिका नहीं है जैसा रोमन चर्चका । हिन्दुओंकी प्रत्येक जातिको अपने आचार-विचारको स्वतंत्र भावसे पालन करनेकी स्वाधीनता थी। अगर समूचीकी समूची जाति ब्राह्मण-श्रेष्ठत्वको स्वीकार कर लेती थी तो चातुर्वण्यमें अत्यन्त निचले स्तरमें, और कभी कभी गुणकर्मानुसार ऊपरले स्तर में भी, उसकी गणना कर ली जाती थी। हिन्दुओंकी ये जातियाँ आचार-विचारमें ब्राह्मणों तथा अन्य श्रेष्ठ जातियोंकी नकल किया करती थीं और समय समयपर ऊँची पदवी भी पा जाया करती थीं। हिन्दुओंमें धर्म-परिवर्तन करानेकी कोई प्रथा नहीं थी पर इतिहाससे ऐसी सैकड़ों प्रकारको जातियाँ खोज निकाली जा सकती हैं जो समूह रूपमें एक ही साथ ब्राह्मण धर्ममें शामिल हो गई थीं। यह एक प्रकारसे सामूहिक धम-परिवर्तन ही होता था । तो जो बात मैं कहने जा रहा था वह यह है कि बौद्ध धर्मके लोप होने के बाद ऐसी बहुत-सी जातियाँ ब्राह्मण धर्मके अन्दर आ गई थीं, जो बौद्ध प्रभावके अन्दर होते हुए भी अपने आचार-विचारमें स्वतंत्र थीं। इन जातियोंके आनेके कारण बहुतसे व्रत, पूजा पार्वण आदि इस धर्ममें आ घुसे जिनकी प्राचीन ग्रंथोंमें कोई व्यवस्था न थी। पुराणोंसे इस बातका समाधान किया गया था। इन जातियों और इनकी समस्त आचार-परम्पराको धीरे धीरे इन टीकाओं तथा ऋषियोंके नामपर लिखे गये नये नये स्मृति और पुराण-ग्रन्थोंमें अन्तर्मुक्त किया गया। यह कार्य इतना जटिल और विशृङ्खल हो गया होगा कि पंडितोंको उसके नियमन और व्यवस्थापनकी जरूरत पड़ी होगी। निबन्ध ग्रंथ उसीके परिणाम हैं। इस प्रकार ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दीके पंडितोंको लोक-जीवनकी ओर झुकनेको वाध्य होना पड़ा था । एक विचित्र प्रवृत्ति इन निबंधों में स्पष्ट ही दिखाई देती है। स्तूपा- कार शास्त्र-वचनोंके ढेरमेंसे वही वाक्य प्रामाण्य मान्य लिये जाते हैं जिनका उपयोग प्रचलित लोकव्यवहारके समर्थन में हो सके । बाकी वाक्योंको 'ननु' कह कर पूर्व पक्षमें फेंक दिया जाता है। इसका परिणाम यह हुआ है कि बंगा- लमें जो वाक्य पूर्व-पक्षका है वही महाराष्ट्र में उत्तर-पक्षका, और उड़ीसामें जो वाक्य उत्तर-पक्षका है वही काशीमें पूर्वका । फिर ऐसे विशेष वचन भी बहुत