पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२६९

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२४६ • हिन्दी साहित्यकी भूमिका द्धिकी जानकारी थी, फिर भी उन्होंने इसे कविसमयके अन्तर्गत नहीं माना है। कालिदासने वसन्त-वर्णनके प्रसङ्गमें इसका स्मरण किया है। . १७ नमेरु सुन्दरियोंके गानसे नमेरु वृक्ष विकसित हो जाता है। विश्वकोषके अनुसार नमेरका ही दूसरा नाम सुरपुन्नाग है । कालिदासके काव्यों में हिमालय पर्वतपर इसका वर्णन पाया जाता है। कैलासपर जब शिव ध्यानावस्थ होकर बैट गये तो उनके गण नमेरु पुष्पोंके आभूषण और भूर्जत्वक् पहनकर मनःशिलासे अनु- लिप्त होकर पार्वत्य औषधोंसे व्याप्त शिलातलोंपर जा बिराजे । कालिदासके ग्रन्थोंसे इस वृक्षका घनच्छाय होना भी प्रकट होता है । शिव जिस स्थानपर ध्यानावस्थ होकर बैठे थे उसके प्रान्त-भागमें नमेरु वृक्षकी शाखाएँ झुकी हुई थीं। १८ नीलोत्पल नीलोत्पलका भी कविसमयके अनुसार पद्मकी ही भाँति नदी-समुद्र आदिम वर्णन होना चाहिए। उल्हणके मतसे उत्पल और नीलोत्पल एक ही वस्तु हैं । क्योंकि उत्पल उस कमलको कहते हैं जो ईषत् नील हो । धन्वन्तरि-निघंटुके मतसे भी यह कमलका ही एक भेद है। नीलकमलका वैष्णव-साहित्यमें भूरि भूरि उल्लेख है पर असल में यह कहीं भारतवर्ष में होता भी है या नहीं, इस विषयमें सन्देह है। सुना है वृन्दावन में किसी वैष्णव महात्माको रासोत्सबके लिए नीलकमलकी आवश्यकता पड़ी। उन्होंने सारे भारतवर्ष में इसकी खोज की । न मिल सकनेपर आस्ट्रेलियासे नीलकमल मँगाने पड़े । पर वैद्यक ग्रन्थोंसे पता चलता है कि नीलकमल इस देश में कोई कविकल्पित वस्तु नहीं है। बहुत प्राचीन युगसे इसका औषधार्थ प्रयोग पाया जाता है। राजशेखर भी इसे कविकल्पना नहीं समझते । कवियोंने नदीमें इसका वर्णन किया है। पं० रामनरेशजी त्रिपाठीने मुझे बताया है कि काश्मीरमें नीलोत्पल होता है और उसे स्थानीय लोग 'नीलोफर' कहते हैं। १ कुमारसंभव १-५५ पर मछिनाथकी टीका । २ कुमारसंभव १-५५ । ३ कुमारसंभव ३-४३ ! ४ काव्यमीमांसा १४; अलंकारशेखर १५, कविकल्पलतावृत्ति २, अलंकार- चिन्तामणि ७-८ । ५ सुश्रुत, सूत्रस्थान १३-१३ टीका । ६ वनौषधिदर्पण पृ० ४०१.३ । ७ काव्यमीमांसा १४३