पृष्ठ:हिंदी साहित्य की भूमिका.pdf/२६८

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कवि-प्रसिद्धियाँ कवियों ने इसे कनवर्ण कहकर वर्णन किया है। कहते हैं कि इसके उत्कट गंधके कारण मोरे, इसके पास नहीं जात । पश्चिमी घाट और मलय प्राय- द्वीपमें यह बहुतायतसे होता है और यत्न करनेसे सारे भारतवर्ष, बर्मा, सीलोन और इण्डोचाइनामें होता है। बसन्त-वर्णनके प्रसंगमें रामायण में इसका उल्लेख है। कालिदासने इसे वसन्त-वर्णनके अन्तमें याद किया है । असलमें यह बसन्त और ग्रीष्मकी सन्धिमें ही खिलता भी है। राजशेखरने ग्रीष्ममें इतका वर्णन किया है। इसकी उत्पत्ति कामके धनुः-खंडसे है। १६ तिलक सुन्दरियोंके वीक्षण-मात्रसे तिलक पुष्प कुसुमित हो जाता है । मुझे ठीक मालूम नहीं कि तिलक वृक्ष कैसा होता है। भावप्रकाशमें पुष्पवर्गमें इसका उल्लेख है सही, पर उससे इसके आकार-प्रकार जाननेमें कुछ सहायता नहीं मिलती। ब्राण्डिसने एक 'तिलकी पक्षकी चर्चा की है। यह चिनानसे लेकर सिकिमतक पार्वत्य प्रदेशोंमें पाया जाता है। मध्यप्रदेश, कोकण, दक्षिणी प्रदेश और उड़ीसामें ये वृक्ष पाये जाते हैं। ब्राण्डिसका अनुमान है कि ऊसर जमीनको शस्यश्यामल बनाने के लिए इस वृक्षका उपयोग किया जा सकता है। यह वृक्ष बसन्तकालमें खिलता है। फूल नीलाभ श्वेत होते हैं। रामायणमें वसन्त-कालमें तिलक-पुष्पकी मञ्जरीका वर्णन मिलता है। कालिदासके मालविकाग्निमित्रमें तिलक-पुष्पका वर्णन है । टीकाकारका अनुमान कि है वहाँ तिलक-पुष्पके लाल रंगकी और कवि इशारा करना चाहता है। उस श्लोकमें कहा गया है कि तक्षणियोंकी तिलक-क्रिया तिलक पुष्पोंसे आक्रान्त हो गई है ! शब्दकल्पद्रुमके मतसे तिलक और पुन्नाग एक ही वृक्ष हैं: • । पर राजशेखरने तिलकको वसन्तमें खिलते देखा था और पुन्नागको हेमंतमै११ । राजशेखरने बसन्त तिलक-पुष्पका जो वर्णन किया है उससे सिद्ध होता है कि उन्हें इस कवि प्रसि- १ सुभाषितरत्नभाण्डागार पृ० ३७९ । २ Brandis : Indian Trees P.81 ३ रा०४-१-७८ : ४ ऋतुसंहार। ५ काव्यमीमांसा १८१ वामनपुराण, अध्याय ६ । ६ मेघदूत २-१७ टीका और कुमार० ३-२६ टीका ! ७ Brandis: Indian Trees P.253. ८ रा० ४-१-१८ और भी देखिए रा०४-१.७८ । ९ मा० ३५० शब्दकल्पद्रुम-तिलक' शब्द देखिए । ११ काव्यमीमांसा १८ ॥